Thursday, August 23, 2007

मुझे कानून पर पूरा भरोसा है

अपने मुन्‍नाभाई जेल से आकर यही ढिंढोरा पीट रहे हैं। वैसे अब ये कौन सी नयी बात है। वे तो शुरू से ही ये कहते आ रहे हैं और आगे भी कहते रहेंगे। कहो भैया खूब कहो, हमको कौनो प्राब्‍लम नहीं है। वैसे भी इस देश के कानून में सबसे ज्‍यादा भरोसा ऐसे अपराधियों, राजनेताओं का ही रह गया है। कुछ दिन पहले मोनिका बेदी भी दिखीं थीं टीवी पर। जेल से निकलने के बाद अपना फोटो सेशन कराते हुए और घोषणा करते हुए कि उनका इस देश के कानून में भरोसा है। भरोसा काहे न हो भाई जब सौ चूहे खाने वाली बिल्‍ली की हज यात्रा का पूरा इंतजाम बाइज्‍जत हो गया हो।

एक कहावत है: Justice delayed is justice denied. बेचारा मुन्‍नाभाई जिसने लुच्‍चों-लफंगों तक को गांधी के विचारों से अवगत कराया। सबको अहिंसा का पाठ पढ़ाया। जो कि बड़े-बड़े राजनेता तक न कर सके। पर फिर भी बेचारे को चौदह साल से कचहरी के चक्‍कर कटवाये जा रहे हैं। और गुनाह भी क्‍या- आर्म्‍स एक्‍ट में दोषी। कभी हमारे चंबल रीजन में तलाशी अभियान चलाया जाय तो हर घर में कोई न कोई आर्म्‍स एक्‍ट वाला केस मिल जायेगा(हालांकि मुझ जैसे चिरकुट जिन्‍होंने ठीक से गाली देना भी नहीं सीखा, इनमें शामिल नहीं हैं)। और बिहार में तो सुना है कि क्‍लाश्निकोव के बड़े-बड़े निर्माता मौजूद हैं। फिर एक बेचारे अभिनेता पर ऐसा अन्‍याय क्‍यों? जमानत मिलने पर भी अब बेचारे पर तलवार लटकी है। थाने में हाजिरी लगाओ फिर कोर्ट के लिखित आर्डर मिल जाने पर सरेंडर करो। फिर भी बेचारा कानून में पूरा विश्‍वास जता रहा है। अरे इतने पर तो हमारे कानून को उसका आभारी होना चाहिए। जब देश के बड़े-बड़े बुद्धिजीवी गाहे-बगाहे ढिंढोरा पीटते रहते हैं कि उनका इस देश के कानून से विश्‍वास उठता जा रहा है, उस समय भी एक(बेचारा) अभिनेता कह रहा है कि उसका देश के कानून में पूरा विश्‍वास है। इसके लिए तो उसे सजा देने की बजाय उसका नागरिक अभिनंदन की तर्ज पर कानूनन अभिनंदन होना चाहिए और एक भव्‍य समारोह आयोजित करके हमारे मुख्‍य न्‍यायाधीश और सी.बी.आई. को घोषणा करनी चाहिए कि देख लो सियारों* अब हमें तुमसे सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं, अब हमको भी गांधी की तरह अपना एक ब्रांड अंबेसेडर मिल गया है। जिसकी अगली फिल्‍म के रिलीज होने के बाद देश का बच्‍चा-बच्‍चा भी कहता नजर आयेगा- मुझे कानून पर पूरा भरोसा है।

*गौरतलब है कि एक जगह हरिशंकर परसाई ने लिखा है- इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं, पर वे सियारों की बारात में बैंड बजाते हैं।

लो हम फिर आ गये झिलाने

प्रतीक भाई बहुत दिन से कह रहे हैं कुछ लिखते काहे नहीं। काहे ब्‍लागिंग बंद कर रखी है। हमने बहाना लगा दिया कि बिजी हैं, पढ़ाई का दबाव है आदि आदि। प्रतीक भाई भी कहां किसी से कम पड़ते हैं। उन्‍होंने रट लगानी शुरू कर दी कि- नहीं अब तो लिखना ही पड़ेगा, आप बहुत अच्‍छा लिखते हैं, आपका लिखा पढ़ने से असीम आनंद मिलता है। अब हम उनको क्‍या कहें?

एक बेसुरे बाथरूम सिंगर से कहिये कि वाह आपकी आवाज कितनी मीठी है, आपको तो सारेगामा में होना चाहिए था तो वह कुछ उछलने जैसी प्रतिक्रिया करेगा। पर हम समझदार आदमी हैं। हमको पता है सामने वाला बंदा हमें चने के झाड़ पे चढ़ाए बिना मानेगा नहीं और उतरना हमें खुद ही पड़ेगा। इसलिए वो हमें और चने के झाड़ पे चढ़ाएं, इससे पहले ही हमने डिसाइड कर लिया कि अब हम नियमित लिखा करेंगे। वैसे भी बकौल श्रीलाल शुक्‍ल अधिकांश लेखन मुरव्‍वत का नतीजा होता है।

लीजिए हो गया न कबाड़ा! बात हो रही थी झिलाने की और पहुंच गयी लेखन पर। यही होता है जब एक ठर्रा पीने वाले को अंग्रेजी पिला दी जाए तो वह सातवें आसमान में उड़ने लगता है। इधर प्रतीक ने हमको चढ़ाया और उधर हम वाया लेखन श्रीलाल शुक्‍ल तक पहुंच गये। पर भाई लोग ये तो सभी जानते हैं कि इस टाइप के आदमी को छेड़ना खतरनाक होता है क्‍योंकि जब वह अपनी रौ में आता है तो सब दूर भाग जाते हैं कहते हुए- बहुत झिलाता है। एक उदाहरण यहां मधुमक्‍खी के छत्‍ते का भी दिया जा सकता है।

तो भाई अब छेड़ ही दिया है तो लीजिए आज से फिर झेलना शुरू कीजिए।