आजकल छोटे पर्दे पर एक चैनल पर बिग बॉस का प्रसारण हो रहा है पर हल्ला हर चैनल पर मचा हुआ है। कुछेक चैनल जिनका काम बस सेलेब्रिटी गॉसिप जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषयों को दिखाने का है उनके अलावा हमारे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का पट्टा भी जिन्होंने लिखाया हुआ है वे सब मिलकर बिग बॉस के घर मे बंद लोगों की बातें, उनके झगड़े, उनके फैशन, उनके अफेयर जैसी बातों को चटखारा ले-लेकर दिन-रात दिखाने में लगे हैं। ऐसा दिखाया जा रहा है मानो इस समय देश में एक बहुत ही महान राष्ट्रीय उत्सव चल रहा है जिसके बारे में मीडिया वालों का दायित्व बनता है कि उसकी पल-पल की अपडेट जनता तक पहुंचाए।
शिल्पा शेट्टी जिन्होंने विदेश में जाकर भारत की महानता का परचम लहराया जिससे कि स्वामी विवेकानंद तक की उपलब्धियां हमें छोटी लगने लगती हैं, इस शो को होस्ट कर रही हैं। आखिर बिग ब्रदर के घर में अपनी ऐसी-तैसी कराकर और कुछ टसुए बहाकर इस बिल्ली के भागों ऐसा छींका फूटा कि वो अब तक साथ निभा रहा है। पर धन्य है भारतीय परंपरा जो हर विदेशी चीज को ऐसे अपनाती है जिससे ब्रिटेनवासियों को अब तक गर्व होता होगा कि हम भले अब उनके शासक नहीं पर दिल से वे खुद को हमारा गुलाम ही मानते हैं तभी तो जेड गुडी जिसके बारे में ना जाने बिग ब्रदर के समय क्या-क्या लिखा गया था, जब भारत में आती है तो पूरा मीडिया उसके सामने ऐसे बिछ जाता है जैसे स्वयं महारानी एलिजाबेथ अपनी रियाया को दर्शन देकर धन्य करने निकली हों।
रियेलिटी शोज में कितनी रियेलिटी होती है यह किसी से छिपा नहीं है। कुछ झगड़ालू और विवादास्पद छवि के लोगों को इकट्ठा कर एक घर में बंद कर दो और फिर चटखारे ले-लेकर उनकी गंदी हरकतों को दिखा-दिखाकर टीआरपी बटोरो। कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे शोज में सभी कुछ पहले से फिक्स होता है।
सो इस बार बिग ब्रदर के घर में ऐसे सेलेब्रिटी (मीडिया ऐसा मानता है जनता नहीं ) बुलाये गये जिनकी महानता का वर्णन सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा। इनमें हैं राहुल महाजन, मोनिका बेदी जैसी राष्ट्रीय हस्तियां, ऐसी पुण्यात्माएं जिनके पुण्यकर्मों का लेखा-जोखा खोलने की यहां जरूरत नहीं वैसे भी कहा जाता है कि प्रतिभा किसी तारीफ की मोहताज नहीं होती सो इन जैसे प्रतिभाशाली और महान विभूतियों को बिग बॉस के अन्य प्रतिभागियों से ज्यादा महत्व देना निहायत जरूरी है।
कुछ समय पहले शायद भारत-श्रीलंका क्रिकेट सीरीज के ही दौरान बीच-बीच में बिग ब्रदर के विज्ञापन दिखाये जाते थे। जिनमें ये दोनों बड़ी मासूम सी सूरत बनाकर खुद को ही नैतिकता का सर्टिफिकेट देते दिखाई देते थे। मोनिका बेदीजी का कहना था कि उन्होंने इतने कष्ट सहे, इतनी मुश्किलें उनके सामने आईं फिर भी वे हिम्मत नहीं हारीं और डटकर खड़ी रहीं और जैसा कि किताबों में बच्चे पढ़ते हैं कि अंत में सच्चाई की जीत होती है कुछ वैसे ही उनको भी जीत मिली और जेल से बाहर अब वे आजाद हैं।
राहुल महाजन कहां पीछे रहने वाले थे। एक समय भारत के सबसे बड़े दलाल रहे व्यक्ति का यह सपूत भी चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा था कि उसने भी जीवन में कुछ कम कष्ट नहीं सहे, उसको भी बुरा समय देखना पड़ा, उसने भी मुंबई की बसों में धक्के खाए। लग रहा था कि जनता उसे उसके सुकर्मों का सर्टिफिकेट दे ना दे, वह खुद इसमें सक्षम है और खुद को सर्टिफिकेट देने के लिए उसे किसी दूसरे की जरूरत नहीं है। हाय भगवान हमें भी ऐसे बुरे दिन दिखाए और फिर हजारों करोड़ के कालेधन का एकमात्र वारिस बनने के लिए कुछेक कष्ट सहने में कोई बुराई नहीं है।
कुल मिलाकर यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि उक्त दोनों ही लोग बेचारे इस गलत सिस्टम के मारे हैं। राहुल महाजन जैसे बेचारों को अदालतों के चक्कर काटने पड़ते हैं अरबपति होकर तो ये तो भाई सरासर जुलम है। हमारे पास इतना पैसा हो तो हम अदालत, पुलिस, सिस्टम सबको खरीद लें। पर बेचारे राहुल को कितना कष्ट भोगना पड़ा होगा इसकी तो बस कल्पना ही की जा सकती है। और मोनिका बेदीजी उनकी मासूमियत पर तो बस मर-मिटने को जी चाहता है। बेचारी कैसी रोनी सूरत बनाकर रोज कहती फिरती हैं कि वे अबू सलेम के बारे में कुछ नहीं जानतीं ना ही उससे उनका कोई संपर्क है। सही है जी एक आतंकवादी की रखैल होकर उन्हें इतनी फुर्सत ही कहां मिली होगी कि वे उसके बारे में कुछ जानें-समझें। फिर भी लोग अब तक शक करते हैं कि उनके अबू सलेम से संबंध हैं। कैसे इस देश के लोग एक बेचारी अबला के चरित्र पर कीचड़ उछालते हैं शर्म आनी चाहिए उन्हें और अब उन्हें जो फिल्मों के आफर मिल रहे हैं वे तो बस उनकी महान अभिनय प्रतिभा के कारण हैं।
मोनिकाजी आप वाकई में अब प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं ऐसे देश में जहां अब भी पैसे तथा पहुंच होने के बावजूद सिस्टम को ना खरीद सकने वाले लोगों के लिए जो बेचारे अदालत के चक्कर काट-काटकर परेशान हैं और इस कारण उन्हें जो कष्ट भोगने पड़ रहे हैं उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। मोनिकाजी आप ही उन्हें कुछ मार्ग दिखाएं। आज के युग में आप ही उनकी तारणहार हैं। ऐसे प्रेरणादायी व्यक्तित्व को हमारा नमन।
Wednesday, September 17, 2008
मोनिका बेदीजी हम आपको नमन करते हैं
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Tuesday, September 16, 2008
पुलिस थाने पर पुलिसकर्मियों का हमला
यदि वाकई में ऐसा हो जाए तो क्या हाल हो ? बीबीसी हिन्दी ने अपने होमपेज पर आज सुबह ये खबर लगाई जो अभी भी दायीं तरफ की इस लिंक पर जाकर पढ़ी जा सकती है जबकि वाकई में थाने पर भीड़ द्वारा हमला किया गया था जिसमें एक पुलिसकर्मी की मौत भी हो गई थी।
इतने प्रतिष्ठित न्यूज वेबसाइट पर ऐसी गलतियां पहले देखने को रही हैं। इनसे अनुरोध है कृपया इसे सुधारें और पाठकों को भ्रम में ना डालें।
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Monday, September 15, 2008
मीडिया वालों शिवराज पाटिल को मत डराओ, हिम्मत है तो खुलकर सामने आओ
लंबे समय से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के रंग-ढंग देखकर टीवी देखना छोड़ ही दिया था। चाहे कितनी भी बड़ी, कैसी भी घटना हो सबकी जानकारी इंटरनेट पर मिल ही जाती है सो टीवी की कोई जरूरत ही नहीं है। परसों दिल्ली में धमाके हुए तब जरूर कुछेक मिनट को टीवी खोलकर देखा। उसके बाद कल एक मित्र ने बताया कि शिवराज पाटिल के बारे में टीवी पर न्यूज चल रही है तो उत्सुकतावश देखा। पता लगा कि महाशय शनिवार रात को बम-धमाकों के समय बार-बार अपने कपड़े बदल रहे थे मानो दिल्ली में कोई फैशन परेड हो रही हो और पाटिल साहिब को रैंप पर चलना हो।
पर इस बार बच्चू मीडिया के शिकंजे में आ ही गए। बहुत सही समय पर मीडिया ने एक जिम्मेदार ओहदे पर बैठे और नीचता के सभी रिकार्ड तोड़ चुके लोकतंत्र की आयातित महारानी के इस चरणसेवक की वो बखिया उधेड़नी शुरू की कि 10 जनपथ तक सकते में आ गया। मीडिया से इस प्रकार की जोरदार प्रतिक्रिया के साथ ही जनता की ये राय कि ऐसे मक्कार गृहमंत्री को लात मारकर बाहर कर देना चाहिए भी इटैलियन महारानी के कानों में जरूर गूंज रही होगी। आज 10 जनपथ पर हुई बैठक में पाटिल को ना बुलाने से लोग जरूर कुछ कयास लगा रहे होंगे पर बेकार में कोई उम्मीद ना पालें ऐसा मेरा सुझाव है क्योंकि कुछ भी बदलने वाला नहीं है। ऐसे समय में किसी भी बदलाव की उम्मीद करना खुद को धोखा देना है जब देश में सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं है और सत्ता एक विदेशी महिला, जो हमेशा भारत देश के लिए अपने किये गये त्याग का ढोंग करती है, के पैर की जूती बनकर रह गई है।
देश के नागरिकों के लिए बहुत सहजता से समझ में आने वाली बात है कि एक विदेशी महिला जो कदम-कदम पर भारत की प्रतिष्ठा की धज्जियां उड़ाती है, जिसके सामने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हाथ जोड़े खड़े रहते हैं, खुद एक राष्ट्राध्यक्ष की तरह व्यवहार करती है और दुनिया को यह संदेश देती है कि भारत भले सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हो उसके प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की हैसियत मेरे पालतू से ज्यादा की नहीं है, की निष्ठा इस देश और इसके लोगों में कैसे हो सकती है। यदि यह ऐसी ही त्यागवान महिला है और इस महान त्याग की भावना के कारण इसने सभी पदों का त्याग कर दिया है तो क्या इसे मालूम नहीं है कि भारत के लोकतंत्र में एक प्रधानमंत्री की क्या गरिमा है, एक राष्ट्रपति का कितना सम्मान है। बम विस्फोटों के बाद प्रधानमंत्री आवास की बजाय 10 जनपथ पर आपात बैठक का होना क्या दुनिया वालों को ये दिखाने के लिए काफी नहीं है कि इस देश में आजकल प्रधानमंत्री नाम की कोई चीज है ही नहीं और है भी तो केवल मैडम के सामने दुम हिलाने के लिए। खुदा ना खास्ता इटली का कोई पर्यटक ही इन विस्फोटों का शिकार बन जाता तो पूरी की पूरी कैबिनेट ऐसे गला फाड़-फाड़कर रोती जैसे इनका कोई सगा मर गया हो खासकर हमारे चाटुकार-श्रेष्ठ मन्नू भाई। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब ये कंधमाल की घटनाओं पर ऐसे मातम मना रहे थे जैसे इनके घर में ही गमी हो गई हो क्योंकि मरने वाले ईसाई थे। उनका बस चलता तो सिक्ख होने के बावजूद ऐसे गम के मौके पर अपने बाल तक मुंडवा लेते पर मैडम ने कहा होगा कि ईसाई धर्म में इसकी कोई जरूरत नहीं है।
फिलहाल तो ऐसा लगता है कि इस देश में केवल एक विदेशी महिला की जूतियों का ही सम्मान हो रहा है जिनकी राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और कैबिनेट तक वंदना करते हैं और इसके अलावा उनकी किसी में कोई निष्ठा नहीं है। भारत के संविधान में चाहे कुछ भी लिखा हो पर अब तो यहां कोई भी माई का लाल मैडम के प्रसाद-पर्यन्त ही अपने पद पर बना रह सकता है चाहे वह राष्ट्रपति ही क्यों ना हो। ऐसी महिला जिसकी इस देश और यहां के संविधान में कोई आस्था नहीं है और उसके चरणवंदकों, जिनकी उसकी चरणवंदना के अलावा किसी और में कोई आस्था नहीं है, से इस देश के भोले-भाले लोग ये उम्मीद लगाकर बैठे हैं कि अब नहीं तो तब ये लोग कुछ करेंगे पर इन लोगों को अपनी महारानी के प्रशस्तिगान और उसकी सुविधाओं का ख्याल रखने से फुर्सत मिले तब तो वे कुछ सोचें
देश में कहीं भी बम धमाके हों, लोग मरे इनका घिसा-पिटा रिकॉर्ड बजता ही रहता है। सांप्रदायिक सौहार्द बनाये रखें, आतंकवादी कभी सफल नहीं होंगे, शांति बनाये रखें। ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान की जनता हाथ धोकर सांप्रदायिक सौहार्द के पीछे पड़ी हुई है और देश में जो शांति है वो इन्हीं के कारण है। नहीं तो ये हिंदुस्तानी तो इतने जंगली लोग हैं कि रोज एक-दूसरे के खून के प्यासे हो उठें पर इनके रोज-रोज बजने वाले रिकॉर्ड को सुनकर ही रुके हुए है।
और वह शिवराज पाटिल वह तो बेचारा महारानी के इस दरबार का एक अदना सा नौकर है। अब आप यदि उसे गृहमंत्री समझने की भूल कर बैठे हैं तो इसमें उस बेचारे का क्या दोष ! वह तो बेचारा अपनी ड्यूटी बजाने के अलावा कुछ जानता ही नहीं। उस बेचारे को यदि कपड़े पहनने का शौक है तो पहनने दीजिए और इसके अलावा उसे कुछ आता हो तो कुछ करे ना। जब अहमदाबाद गया था तो वहां की बारिश में बेचारे के जूते में कीचड़ लगने के भय से कितना चिंतित हो गया था। हो भी क्यों ना, इतनी मेहनत करके बेचारे ने अपना वार्डरोब सजाया हुआ है। इतने भय के माहौल में उसे भी डर लगता होगा ना पर लोग उस बेचारे को और डरा रहे हैं। शास्त्रों तक में ऐसे निरीह प्राणियों पर दया करने की बात कही गई है फिर भी लोग ऐसे पापकर्म के भागी बन रहे हैं तो भगवान उनको सदबुद्धि दे।
मीडिया जो इस मामले में बड़े जोर-शोर से अपनी पीठ ठोंक रहा है अपने गिरेबान में झांके। एक अदने से व्यक्ति को बलि का बकरा बनाकर वाहवाही तो उसने लूट ली पर उसे भी पता है कि इससे कुछ होना-जाना नहीं है पर उसे इससे क्या मतलब। सत्ता के शीर्ष पदों पर बैठे व्यक्ति तक अब उस बेचारे के पीछे पड़े हैं, खुद कई कांग्रेसी नेता तक उनको बुरा-भला कह रहे हैं क्योंकि उन्हें भी अपनी गोटियां फिट करनी हैं। ऐसे में उस व्यक्ति को नंगा करने से मीडिया को भला काहे कोई गुरेज हो पर ऐसा करके उसने कोई बड़ा वीरता का काम नहीं किया है। यदि मीडिया कुछ करना ही चाहता है तो खुलकर सामने आए और जो वास्तविक जिम्मेदार हैं उनकी ओर उंगली उठाए। पर उसे अपनी दुकान चलानी है और इसीलिए वह ऐसे विलेन खोजता है जो उसे कोई नुकसान तो नहीं पहुंचा सकते अव्वल वाहवाही जरूर दिला सकते हैं।
पर इस बार बच्चू मीडिया के शिकंजे में आ ही गए। बहुत सही समय पर मीडिया ने एक जिम्मेदार ओहदे पर बैठे और नीचता के सभी रिकार्ड तोड़ चुके लोकतंत्र की आयातित महारानी के इस चरणसेवक की वो बखिया उधेड़नी शुरू की कि 10 जनपथ तक सकते में आ गया। मीडिया से इस प्रकार की जोरदार प्रतिक्रिया के साथ ही जनता की ये राय कि ऐसे मक्कार गृहमंत्री को लात मारकर बाहर कर देना चाहिए भी इटैलियन महारानी के कानों में जरूर गूंज रही होगी। आज 10 जनपथ पर हुई बैठक में पाटिल को ना बुलाने से लोग जरूर कुछ कयास लगा रहे होंगे पर बेकार में कोई उम्मीद ना पालें ऐसा मेरा सुझाव है क्योंकि कुछ भी बदलने वाला नहीं है। ऐसे समय में किसी भी बदलाव की उम्मीद करना खुद को धोखा देना है जब देश में सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं है और सत्ता एक विदेशी महिला, जो हमेशा भारत देश के लिए अपने किये गये त्याग का ढोंग करती है, के पैर की जूती बनकर रह गई है।
देश के नागरिकों के लिए बहुत सहजता से समझ में आने वाली बात है कि एक विदेशी महिला जो कदम-कदम पर भारत की प्रतिष्ठा की धज्जियां उड़ाती है, जिसके सामने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री हाथ जोड़े खड़े रहते हैं, खुद एक राष्ट्राध्यक्ष की तरह व्यवहार करती है और दुनिया को यह संदेश देती है कि भारत भले सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हो उसके प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की हैसियत मेरे पालतू से ज्यादा की नहीं है, की निष्ठा इस देश और इसके लोगों में कैसे हो सकती है। यदि यह ऐसी ही त्यागवान महिला है और इस महान त्याग की भावना के कारण इसने सभी पदों का त्याग कर दिया है तो क्या इसे मालूम नहीं है कि भारत के लोकतंत्र में एक प्रधानमंत्री की क्या गरिमा है, एक राष्ट्रपति का कितना सम्मान है। बम विस्फोटों के बाद प्रधानमंत्री आवास की बजाय 10 जनपथ पर आपात बैठक का होना क्या दुनिया वालों को ये दिखाने के लिए काफी नहीं है कि इस देश में आजकल प्रधानमंत्री नाम की कोई चीज है ही नहीं और है भी तो केवल मैडम के सामने दुम हिलाने के लिए। खुदा ना खास्ता इटली का कोई पर्यटक ही इन विस्फोटों का शिकार बन जाता तो पूरी की पूरी कैबिनेट ऐसे गला फाड़-फाड़कर रोती जैसे इनका कोई सगा मर गया हो खासकर हमारे चाटुकार-श्रेष्ठ मन्नू भाई। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब ये कंधमाल की घटनाओं पर ऐसे मातम मना रहे थे जैसे इनके घर में ही गमी हो गई हो क्योंकि मरने वाले ईसाई थे। उनका बस चलता तो सिक्ख होने के बावजूद ऐसे गम के मौके पर अपने बाल तक मुंडवा लेते पर मैडम ने कहा होगा कि ईसाई धर्म में इसकी कोई जरूरत नहीं है।
फिलहाल तो ऐसा लगता है कि इस देश में केवल एक विदेशी महिला की जूतियों का ही सम्मान हो रहा है जिनकी राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और कैबिनेट तक वंदना करते हैं और इसके अलावा उनकी किसी में कोई निष्ठा नहीं है। भारत के संविधान में चाहे कुछ भी लिखा हो पर अब तो यहां कोई भी माई का लाल मैडम के प्रसाद-पर्यन्त ही अपने पद पर बना रह सकता है चाहे वह राष्ट्रपति ही क्यों ना हो। ऐसी महिला जिसकी इस देश और यहां के संविधान में कोई आस्था नहीं है और उसके चरणवंदकों, जिनकी उसकी चरणवंदना के अलावा किसी और में कोई आस्था नहीं है, से इस देश के भोले-भाले लोग ये उम्मीद लगाकर बैठे हैं कि अब नहीं तो तब ये लोग कुछ करेंगे पर इन लोगों को अपनी महारानी के प्रशस्तिगान और उसकी सुविधाओं का ख्याल रखने से फुर्सत मिले तब तो वे कुछ सोचें
देश में कहीं भी बम धमाके हों, लोग मरे इनका घिसा-पिटा रिकॉर्ड बजता ही रहता है। सांप्रदायिक सौहार्द बनाये रखें, आतंकवादी कभी सफल नहीं होंगे, शांति बनाये रखें। ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान की जनता हाथ धोकर सांप्रदायिक सौहार्द के पीछे पड़ी हुई है और देश में जो शांति है वो इन्हीं के कारण है। नहीं तो ये हिंदुस्तानी तो इतने जंगली लोग हैं कि रोज एक-दूसरे के खून के प्यासे हो उठें पर इनके रोज-रोज बजने वाले रिकॉर्ड को सुनकर ही रुके हुए है।
और वह शिवराज पाटिल वह तो बेचारा महारानी के इस दरबार का एक अदना सा नौकर है। अब आप यदि उसे गृहमंत्री समझने की भूल कर बैठे हैं तो इसमें उस बेचारे का क्या दोष ! वह तो बेचारा अपनी ड्यूटी बजाने के अलावा कुछ जानता ही नहीं। उस बेचारे को यदि कपड़े पहनने का शौक है तो पहनने दीजिए और इसके अलावा उसे कुछ आता हो तो कुछ करे ना। जब अहमदाबाद गया था तो वहां की बारिश में बेचारे के जूते में कीचड़ लगने के भय से कितना चिंतित हो गया था। हो भी क्यों ना, इतनी मेहनत करके बेचारे ने अपना वार्डरोब सजाया हुआ है। इतने भय के माहौल में उसे भी डर लगता होगा ना पर लोग उस बेचारे को और डरा रहे हैं। शास्त्रों तक में ऐसे निरीह प्राणियों पर दया करने की बात कही गई है फिर भी लोग ऐसे पापकर्म के भागी बन रहे हैं तो भगवान उनको सदबुद्धि दे।
मीडिया जो इस मामले में बड़े जोर-शोर से अपनी पीठ ठोंक रहा है अपने गिरेबान में झांके। एक अदने से व्यक्ति को बलि का बकरा बनाकर वाहवाही तो उसने लूट ली पर उसे भी पता है कि इससे कुछ होना-जाना नहीं है पर उसे इससे क्या मतलब। सत्ता के शीर्ष पदों पर बैठे व्यक्ति तक अब उस बेचारे के पीछे पड़े हैं, खुद कई कांग्रेसी नेता तक उनको बुरा-भला कह रहे हैं क्योंकि उन्हें भी अपनी गोटियां फिट करनी हैं। ऐसे में उस व्यक्ति को नंगा करने से मीडिया को भला काहे कोई गुरेज हो पर ऐसा करके उसने कोई बड़ा वीरता का काम नहीं किया है। यदि मीडिया कुछ करना ही चाहता है तो खुलकर सामने आए और जो वास्तविक जिम्मेदार हैं उनकी ओर उंगली उठाए। पर उसे अपनी दुकान चलानी है और इसीलिए वह ऐसे विलेन खोजता है जो उसे कोई नुकसान तो नहीं पहुंचा सकते अव्वल वाहवाही जरूर दिला सकते हैं।
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