Sunday, January 18, 2009

आखिर मोदी इतने करिश्‍माई क्‍यों हैं


केरल से माकपा सांसद एपी अब्‍दुल्‍ला कुट्टी को गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास के मॉडल की तारीफ करना महंगा पड़ गया, जब उन्‍हें अपने बयान के कारण पार्टी से निलंबित कर दिया गया। कट्टर भाजपा विरोधी और मोदी की मुखालफत करने में हमेशा मुखर रहने वाली माकपा को ये सहन नहीं हुआ कि उनका ही एक सांसद मोदी की तारीफ कर रहा है। उधर उद्योगपतियों अनिल अंबानी व सुनील भारती मित्‍तल द्वारा मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिये प्रोजेक्‍ट करने संबंधी मामला भी गर्म है। मीडिया पिली हुई है भाजपा नेताओं से सफाई मांगने। कुल मिलाकर जो भी हो मोदी उत्‍तरोत्‍तर विवादों के केंद्र में रहकर और विवादों से ऊपर उठकर राष्‍ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर चमकने की पूरी तैयारी में जुटे हैं। हालांकि उन्‍होंने भी कहा है कि आडवाणी ही प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार हैं और इस बारे में कोई विवाद नहीं है।
जहां तक प्रधानमंत्री पद का सवाल है वे काफी समय से इसकी चर्चा के केंद्र में रहे हैं और उनके विरोधी इसे नकारते रहे हैं पर हालिया प्रकरण से उनकी इस दावेदारी को और बल मिला है और उनकी स्‍वीकार्यता राष्‍ट्रीय स्‍तर के नेता के तौर पर बढ़ी है।
मोदी के बारे में उनके विरोधियों द्वारा कहा जाता है कि गुजरात के बाहर उनका कोई कद नहीं है, वे कट्टर हिंदूवादी और अल्‍पसंख्‍यकविरोधी हैं पर इन सब विवादों के बावजूद पिछले काफी समय से उनकी स्‍वीकार्यता बढ़ती ही गई है और इसमें बहुत बड़ा हाथ उनके विकास के एजेंडे का है। एक मुख्‍यमंत्री के तौर पर उनकी छवि पाक-साफ है उन पर भ्रष्‍टाचार का कोई आरोप नहीं है। सबसे बड़ी बात है गुजरातियों का उनमें विश्‍वास। आज हिंदुस्‍तान का कौन सा प्रदेश है जहां का मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी की ही तरह अपने प्रदेश में लोकप्रिय है। मायावती प्रधानमंत्री बनने की बात करती हैं पर क्‍या उत्‍तर प्रदेश का एक आम नागरिक निर्विवाद रूप से उन्‍हें अपना नेता मानता है ? ऐस में देश का नेतृत्‍व कैसे होगा। सही बात तो ये है कि अटलजी के बाद अब तक देश में कोई राष्‍ट्रीय स्‍तर का नेता पैदा नहीं हो सका है जो हैं भी उनकी छवि और स्‍वीकार्यता राष्‍ट्रीय स्‍तर का नेता होने लायक नहीं भले ही वे आडवाणी क्‍यों ना हों।
जहां तक धर्मनिरपेक्षता की बात है जनता की समझ में अब आने लगा है कि धर्मनिरपेक्षता की ढपली बजाते रहने वालों का ही दामन इस मामले में सबसे दागदार है। हालांकि प्रोपेगैंडा करने में उन्‍हें महारत हासिल है। वरना मोदी द्वारा गांधीनगर में मंदिरों को तोड़ा जाना उनको नजर नहीं आता जबकि हिंदुस्‍तान में कहीं भी किसी भी दूसरे धर्म के स्‍थलों पर एक ईंट भी उखाड़े जाने पर ये हंगामा बरपा देने के लिए तैयार बैठे हैं।
मोदी साथ सबसे बड़ी बात है कि उनके समर्थक उनके कट्टर समर्थक हैं और विरोधी धुरविरोधी। धीरे-धीरे जनमानस के दिमाग में ये बात बैठ रही है कि एक विकसित प्रदेश का मुख्‍यमंत्री वास्‍तव में एक विकासशील देश को प्रगति के रास्‍ते पर ले जा सकता है। उनके ऊर्जावान भाषणों में जनमानस को प्रभावित करने की कला है। वे मुद्दों पर स्‍पष्‍ट राय रखते हैं और सरल व सहज संप्रेषण कला उनको दूसरों से बेहतर वक्‍ता बनाती है। अभी हाल ही में मध्‍यप्रदेश के चुनावों के समय शहर में हुई आमसभा में एक गुजराती के मुख से हिंदी में जोरदार भाषण सुनकर बहुत प्रभावित हुआ। उनका व्‍यक्तित्‍व वाकई एक नेता का सा है। वरना आजकल चारों ओर चोर, दलाल, दे शद्रोही नेता बने बैठे हैं। यहां तक कि देश का वर्तमान प्रधानमंत्री तक जब भाषण देता है तो लगता है अपनी ड्यूटी बजा रहा है कमोबेश यही स्थिति भाजपा के भावी प्रधानमंत्री की है और वे अपने दम पर भाजपा को जिता भी पायेंगे इसके कोई आसार नजर नहीं आ रहे।
मोदी के विरोधियों को अन्‍य मतभेदों से परे हटकर इस बात को तो स्‍वीकार करना ही होगा कि अन्‍य प्रदेशों की बजाय गुजरात में संभावनाएं ज्‍यादा नजर आती हैं, उद्योगपति वहां निवेश कर रहे हैं और जनता में उनकी लोकप्रियता निर्विवाद है। वरना विकास को साथ लिये बिना कोई भी नेता इतने समय तक कुर्सी पर काबिज नहीं रह सकता और लो‍कप्रिय नहीं बना रह सकता। ये मोदी ही हैं जिन्‍होंने ये कहने की हिम्‍मत दिखाई कि उन्‍हें केंद्र से एक पैसा नहीं चाहिए बशर्ते उनके प्रदेश से केंद्र को जो टैक्‍स जाता है वो ना मांगा जाए जबकि दूसरे प्रदेशों के मुख्‍यमंत्री कर्जों में डूबे रहने और केंद्र से पैकेज की मांग करने के लिए जाने जाते हैं।
आतंकवाद के मुद्दे और अन्‍य राष्‍ट्रीय मुद्दों पर अपनी बेबाक राय सामने रखना भी राष्‍ट्रीय स्‍तर के नेताओं का ही शगल है। जो भी हो नरेंद्र मोदी भले ही आगामी चुनावों में प्रधानमंत्री ना बन सकें पर राष्‍ट्र का नेतृत्‍व करने की ऊर्जा उनमें है।