Thursday, April 07, 2011

क्‍या अन्‍ना दूसरे जयप्रकाश साबित होंगे?

अन्‍ना हजारे के आंदोलन के चलते कुछ लोग जयप्रकाश की बात फिर से करने लगे हैं...जिनमें दोनों ही तरह के सुर है...कुछ का कहना है कि जब जयप्रकाश जैसे नेता की संपूर्ण क्रांति की लहर भी कोई बदलाव नहीं ला सकी ऐसे में जयप्रकाश के समय से ही चली आ रही मांग को अन्‍ना कैसे मनवा पाएंगे जब पूरा देश क्रिकेट की जीत के नशे में मदमस्‍त हो और मौजूदा सरकार ने भारत की अब तक की भ्रष्‍टतम सरकार का मेडल पहन रखा हो और जिसका नेतृत्‍व एक ऐसा प्रधानमंत्री कर रहा हो जिसे अब तक मीडिया और विपक्ष द्वारा की गई सरेआम बेइज्‍जती पर जरा भी शर्म नहीं आती हो और जो एक ही रटा-रटाया जवाब देना जानता हो- मुझे कुछ नहीं पता.... और ऐसी जनता जिसका एक विदेशी परिवार के सदस्‍य को युवराज कहे जाते समय खून ही नहीं खौलता हो...और तमाम भ्रष्‍टाचार या कहें भ्रष्‍टाचार के वर्ल्‍ड रिकॉर्ड बनाने वाली सरकार के प्रधानमंत्री के बारे में लोग कहते हुए मिल जाते हैं कि- बेचारा वो तो भला और ईमानदार है....
जनता को कुछ नहीं चाहिए उसे तो चालीस चोरों का सरदार भला और ईमानदार दिखना चाहिए फिर वो चालीस चोरों को भी स्‍वीकार कर लेगी...और गोरी चमड़ी के प्रति आदर तो जीन में है इसलिए हर जगह राहुल बाबा की जय है...ये कोई नहीं सोचना चाहता कि अभी तो हिंदुस्‍तान में फिर भी काली कमाई करने वाले मीडिया में आने के कारण कहने को ही सही पुलिस की गिरफ्त में हैं...युवराज के गद्दीनशीं होने और रामराज्‍य आने के बाद तो शायद पता भी ना चले कि इटली में बैठकर कौन भारत का गेम बजा रहा है और ना पुलिस ना इंटरपोल उसे पहचान पा रही है
पर फिलहाल भारत वर्ल्‍ड-कप जीता है और शायद आगामी दिनों में इस बात पर भी देशव्‍यापी आंदोलन हो जाए कि सरकार सचिन को भारत-रत्‍न क्‍यों नहीं दे रही है वैसे फिलहाल आईपीएल के कारण इस आंदोलन को थोड़ा आगे बढ़ाना ज्‍यादा मुनासिब लग रहा है..
हालांकि अन्‍ना को अच्‍छा समर्थन मिल रहा है और खासकर मीडिया कवरेज के कारण वे पूरे देश में सुर्खियों में हैं....और कम से कम यही अच्‍छी बात है....दूसरी तरफ युवाओं में उनके प्रति समर्थन की उम्‍मीद मुझे है...कम से कम वे इस बात को जरूर समझ रहे हैं और उनको इस वर्ग से समर्थन मिल भी रहा है...और आगे ये और बढ़ेगा ऐसी उम्‍मीद सबको है...
पर समाज के हर तबके से अन्‍ना को व्‍यापक समर्थन मिल पाना फिलहाल के समय में संभव नहीं दिखता है....और खासकर जब ऐसा कहा जा रहा है कि भ्रष्‍ट भारत में बहुसंख्‍यक समाज भ्रष्‍ट हो चुका है तब वही समाज कैसे अपने ही खिलाफ उठ खड़ा होगा...मेरे ख्‍याल में भ्रष्‍टाचार और ईमानदारी की परिभाषाओं के फेर में पड़ने की कोई जहमत नहीं उठाना चाहता हर व्‍यक्‍ित और वर्ग के अपने हित हैं और सभी अपने हितों की लड़ाई लड़ने में व्‍यस्‍त हैं...वैसे भी बढ़ती महंगाई और भौतिकतावादी युग में पीछे कोई नहीं रहना चाहता...सभी कैसे भी करके जल्‍दी आगे बढ़ने की होड़ में व्‍यस्‍त हैं...ये अनुभव अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में किया होगा कि सिस्‍टम कैसे व्‍यक्ति को भ्रष्‍ट बनाता है....हालांकि ईमानदारी अभी बची हुई है पर बहुत थोड़ी जैसे चिडि़याघर तक सिमटा वन्‍य-जीवन....फिर भी हरिशंकर परसाई की इस उक्ति को कोई नहीं झुठला सकता कि- 'ईमानदार तभी तक ईमानदार है जब तक उसे बेईमान होने का मौका नहीं मिला'