जनता को कुछ नहीं चाहिए उसे तो चालीस चोरों का सरदार भला और ईमानदार दिखना चाहिए फिर वो चालीस चोरों को भी स्वीकार कर लेगी...और गोरी चमड़ी के प्रति आदर तो जीन में है इसलिए हर जगह राहुल बाबा की जय है...ये कोई नहीं सोचना चाहता कि अभी तो हिंदुस्तान में फिर भी काली कमाई करने वाले मीडिया में आने के कारण कहने को ही सही पुलिस की गिरफ्त में हैं...युवराज के गद्दीनशीं होने और रामराज्य आने के बाद तो शायद पता भी ना चले कि इटली में बैठकर कौन भारत का गेम बजा रहा है और ना पुलिस ना इंटरपोल उसे पहचान पा रही है
पर फिलहाल भारत वर्ल्ड-कप जीता है और शायद आगामी दिनों में इस बात पर भी देशव्यापी आंदोलन हो जाए कि सरकार सचिन को भारत-रत्न क्यों नहीं दे रही है वैसे फिलहाल आईपीएल के कारण इस आंदोलन को थोड़ा आगे बढ़ाना ज्यादा मुनासिब लग रहा है..
हालांकि अन्ना को अच्छा समर्थन मिल रहा है और खासकर मीडिया कवरेज के कारण वे पूरे देश में सुर्खियों में हैं....और कम से कम यही अच्छी बात है....दूसरी तरफ युवाओं में उनके प्रति समर्थन की उम्मीद मुझे है...कम से कम वे इस बात को जरूर समझ रहे हैं और उनको इस वर्ग से समर्थन मिल भी रहा है...और आगे ये और बढ़ेगा ऐसी उम्मीद सबको है...
पर समाज के हर तबके से अन्ना को व्यापक समर्थन मिल पाना फिलहाल के समय में संभव नहीं दिखता है....और खासकर जब ऐसा कहा जा रहा है कि भ्रष्ट भारत में बहुसंख्यक समाज भ्रष्ट हो चुका है तब वही समाज कैसे अपने ही खिलाफ उठ खड़ा होगा...मेरे ख्याल में भ्रष्टाचार और ईमानदारी की परिभाषाओं के फेर में पड़ने की कोई जहमत नहीं उठाना चाहता हर व्यक्ित और वर्ग के अपने हित हैं और सभी अपने हितों की लड़ाई लड़ने में व्यस्त हैं...वैसे भी बढ़ती महंगाई और भौतिकतावादी युग में पीछे कोई नहीं रहना चाहता...सभी कैसे भी करके जल्दी आगे बढ़ने की होड़ में व्यस्त हैं...ये अनुभव अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में किया होगा कि सिस्टम कैसे व्यक्ति को भ्रष्ट बनाता है....हालांकि ईमानदारी अभी बची हुई है पर बहुत थोड़ी जैसे चिडि़याघर तक सिमटा वन्य-जीवन....फिर भी हरिशंकर परसाई की इस उक्ति को कोई नहीं झुठला सकता कि- 'ईमानदार तभी तक ईमानदार है जब तक उसे बेईमान होने का मौका नहीं मिला'
5 comments:
सबको भ्रष्टाचार मिटाना होगा।
खुद ईमानदार होते हुए भी जब इंसान गरीब होता हैं और बेईमान को अमीर देखता हैं तो शायद रास्ता दिखना बंद हो जाता हैं
bhastrachar khatm karo...
बधाई हो ..अन्ना के साथ हम जीत गए .
.
निसंदेह अन्ना जी दूसरा रूप हैं जय प्रकाश जी का। इमानदार लोग तो बीते दिनों की जागीर से लगने लगे थे , लेकिन अन्ना हजारे जैसे व्यक्तित्व ने सूर्य की किरणें भर दी हैं निराशा के अन्धकार में।
दुःख इसी बात का है की व्यक्तित्व निर्माण होने में वक्त बहुत लगता है। लड़ाईयां बहुत लम्बी होती हैं । जो जवानी में देशभक्ति करते हैं , उन्हें समाज के घाघ कुछ करने नहीं देते और जो बुढ़ापे में कुछ प्रयास करते हैं , उनकें काल ज्यादा वक्त नहीं देता।
.
Post a Comment