दुनिया में अनेक धर्मों और उनके मानने वालों की ईश्वर के बारे में अपनी-अपनी धारणाएं हैं। सबके अपने-अपने भगवान हैं और अपने भगवान को श्रेष्ठ साबित करने की एक होड़ सबमें मची हुई है। पर उस होड़ के परे जाकर क्या हमने कभी सोचा है कि भगवान क्या है? ‘वार एंड वीस’ और ‘अन्ना करेनिना’ जैसी महान कृतियों के लेखक लियो टॉल्सटॉय इस बारे में कुछ कह रहे हैं अपनी इस कहानी में। कहानी का घटनास्थल है भारत के सूरत शहर का एक कॉफी हाउस-
कहानी- सूरत का कहवाघर
लेखक- लियो टॉल्सटॉय
सूरत नगर में एक कहवाघर था, जहां अनेकानेक यात्री और विदेशी दुनियाभर से आते थे और विचारों का आदान-प्रदान करते थे। एक दिन वहां फारस का एक विद्वान आया। पूरी जिंदगी ‘प्रथम कारण’ के बारे में चर्चा करते करते उसका दिमाग ही चल गया था। उसने यह सोचना शुरू कर दिया था कि सृष्टि को नियंत्रण में रखने वाली कोई उच्च सत्ता नहीं है। इस व्यक्ति के साथ एक अफ्रीकी गुलाम भी था, जिससे उसने पूछा- बताओ, क्या तुम्हारे ख्याल में भगवान है? गुलाम ने अपनी कमरबंद में से किसी देवता की लकड़ी की मूर्ति निकाली और बोला- यही है मेरा भगवान, जिसने जिंदगी भर मेरी रक्षा की है। गुलाम का जवाब सुनकर सभी चकरा गए। उनमें से एक ब्राह्मण था। वह गुलाम की ओर घूमा और बोला- ब्रह्म ही सच्चा भगवान है। एक यहूदी भी वहां बैठा था। उसका दावा था- इस्राइल वासियों का भगवान ही सच्चा भगवान है, वे ही उसकी चुनी हुई प्रजा हैं। एक कैथोलिक ने दावा किया- भगवान तक रोम के कैथोलिक चर्च द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। लेकिन तभी एक प्रोटेस्टेंट पादरी जो वहां मौजूद था, बोल उठा- केवल गॉस्पेल के अनुसार प्रभु की सेवा करने वाले प्रोटेस्टेंट ही बचेंगे। कहवाघर में बैठे एक तुर्क ने कहा- सच्चा धर्म मुहम्मद और उमर के अनुयायियों का ही है, अली के अनुयायियों का नहीं। हर कोई दलीलें रख रहा था और चिल्ला रहा था। केवल एक चीनी ही, जो कि कनफ्यूशियस का शिष्य था, कहवाघर के एक कोने में चुपचाप बैठा था और विवाद में हिस्सा नहीं ले रहा था। तब सभी लोग उस चीनी की ओर घूमे और उन्होंने उससे अपने विचार प्रकट करने को कहा।
कनफ्यूशियस के शिष्य उस चीनी ने अपनी आंखें बंद कर लीं और क्षण भर सोचता रहा। तब उसने आंखें खोलीं, अपने वस्त्र की चौड़ी आस्तीनों में से हाथ बाहर निकाले, हाथ को सीने पर बांधा और बड़े शांत स्वर में कहने लगा- मित्रगण, मुझे लगता है, लोगों का अहंकार ही धर्म के मामले में एक-दूसरे से सहमत नहीं होने देता। मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूं, जिससे ये बात साफ हो जाएगी।
- मैं यहां चीन से एक अंग्रेजी स्टीमर से आया। यह स्टीमर दुनिया की सैर को निकला था। ताजा पानी लेने के लिए हम रुके और सुमात्रा द्वीप के पूर्वी किनारे पर उतरे, दोपहर का वक्त था। हममें से कुछ लोग समंदर के किनारे ही नारियल के कुंजों में जा बैठे। निकट ही एक गांव था। हम सब लोगों की राष्ट्रीयता भिन्न-भिन्न थी।
- जब हम बैठे हुए थे, तो एक अंधा आदमी हमारे पास आया। बाद में हमें मालूम हुआ कि सूर्य की ओर लगातार देखते रहने के कारण उसकी आंखें चली गई थीं- वह जानना चाहता था कि सूर्य आखिर है क्या, ताकि वह उसके प्रकाश को पकड़ सके।
- यह जानने के लिए ही वह सूर्य की ओर देखता रहा। परिणाम यही हुआ कि सूर्य की रोशनी से उसकी आंखें दुखने लगीं और वह अंधा हो गया।
- तब उसने अपने आपसे कहा- सूर्य का प्रकाश द्रव नहीं है, क्योंकि यदि वह द्रव होता, तो इसे एक पात्र से दूसरे पात्र में उड़ेला जा सकता था, तब यह पानी और हवा की तरह चलता। यह आग भी नहीं है, क्योंकि अगर यह आग होता, तो पल भर में बुझ सकता था। यह कोई आत्मा भी नहीं है, क्योंकि आंखें इसे देख सकती हैं। यह कोई पदार्थ भी नहीं है, क्योंकि इसे हिलाया नहीं जा सकता। अत:, क्योंकि सूर्य का प्रकाश न द्रव है, न अग्नि है, न आत्मा है और न ही कोई पदार्थ, यह कुछ भी नहीं है।
- यही था उसका तर्क। और, हमेशा सूर्य की ओर देखते रहने और उसके बारे में सोचते रहने के कारण वह अपनी आंखें और बुद्धि दोनों ही खो बैठा। और जब वह पूरी तरह अंधा हो गया, उसे पूरा विश्वास हो गया कि सूर्य का अस्तित्व ही नहीं है।
- इस अंधे आदमी के साथ एक गुलाम भी था, उसने अपने स्वामी को नारियल कुंज में बैठाया और जमीन से एक नारियल उठाकर उसका दिया बनाने लगा। उसने नारियल के रेशों से एक बत्ती बनाई, गोले में से थोड़ा तेल निचोड़कर खोल में डाला और बत्ती को उसमें भिगो लिया।
- जब गुलाम अपने काम में मस्त था, अंधे आदमी ने सांस भरी और उससे बोला- तो दास भाई, क्या मेरी बात सही नहीं थी, जब मैंने तुम्हें बताया था कि सूर्य का अस्तित्व ही नहीं है। क्या तुम्हें दिखाई नहीं देता कि अंधेरा कितना गहरा है? और लोग फिर भी कहते हैं कि सूर्य है.... अगर है, तो फिर यह क्या है?
- मुझे मालूम नहीं है कि सूर्य क्या है- गुलाम ने कहा- मेरा उससे क्या लेना-देना ! पर मैं यह जानता हूं कि प्रकाश क्या है। यह देखिए, मैंने रात्रि के लिए एक दीया बनाया है, जिसकी मदद से मैं आपको देख सकता हूं।
-तब गुलाम ने दिया उठाया और बोला- यह है मेरा सूर्य।
- एक लंगड़ा आदमी, जो अपनी बैसाखियां लिए पास ही बैठा था, यह सुनकर हंस पड़ा- लगता है तुम सारी उमर नेत्रहीन ही रहे- उसने अंधे आदमी से कहा- और कभी नहीं जान पाए कि सूर्य क्या है। मैं तुम्हें बताता हूं कि यह क्या है। सूर्य आग का गोला है, जो हर रोज समंदर में से निकलता है और शाम के समय हर रोज हमारे ही द्वीप की पहाडि़यों के पीछे छुप जाता है। अगर तुम्हारी नजर होती तो तुमने भी देख लिया होता।
- एक मछुआरा जो यह बातचीत सुन रहा था, बोला- बड़ी साफ बात है कि तुम अपने द्वीप से आगे कहीं नहीं गए हो। अगर तुम लंगड़े न होते और अगर तुम भी मेरी तरह नौका में कहीं दूर गए होते, तो तुम्हें पता चलता कि सूर्य हमारे द्वीप की पहाडि़यों के पीछे अस्त नहीं होता। वह जैसे हर रोज समंदर में से उदय होता है, वैसे ही हर रात समंदर में ही डूब जाता है।
- तब एक भारतीय, जो हमारी ही पार्टी का था, यों बोल उठा- मुझे हैरानी हो रही है कि एक अक्लमंद आदमी ऐसी बेवकूफी की बातें कर रहा है। आग का कोई गोला पानी में डूबने पर बुझने से कैसे बच सकता है? सूर्य आग का गोला नहीं है। वह तो देव नाम की दैवीय शक्ति है, और वह अपने रथ में बैठकर स्वर्ण-पर्वत मेरू के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है। कभी-कभी राहु और केतु नाम के राक्षसी नाग उस पर हमला कर देते हैं और उसे निगल जाते हैं, तब पृथ्वी पर अंधकार छा जाता है। तब हमारे पुजारी प्रार्थना करते हैं, ताकि देव का छुटकारा हो सके। तब यह छोड़ दिया जाता है। केवल आप जैसे अज्ञानी ही ऐसा सोच सकते हैं कि सूर्य केवल उनके देश के लिए ही चमकता है।
- तब वहां उपस्थित एक मिस्री जहाज का मालिक बोलने लगा- नहीं, तुम भी गलत कह रहे हो। सूर्य दैवीय शक्ति नहीं है और भारत और स्वर्ण-पर्वत के चारों ओर ही नहीं घूमता। मैं कृष्ण सागर पर यात्राएं कर चुका हूं। अरब के तट के साथ-साथ भी गया हूं। मड-गास्कर और फिलिपींस तक हो आया हूं। सूर्य पूरी धरती को आलोकित करता है, केवल भारत को ही नहीं, यह केवल एक ही पर्वत के चक्कर नहीं काटता रहता, जबकि दूर पूरब में उगता है- जापान के द्वीपों से भी परे और दूर पश्चिम में डूब जाता है- इंग्लैंड के द्वीपों से भी आगे कहीं, इसलिए जापानी लोग अपने देश को ‘निप्पन’ यानी ‘उगते सूरज का देश’ कहते हैं। मुझे अच्छी तरह मालूम है, क्योंकि मैंने काफी दुनिया देखी है।
- वह बोलता चला गया होता अगर हमारे जहाज के अंग्रेज मल्लाह ने उसे रोक न दिया होता। वह कहने लगा- दुनिया में और कोई ऐसा देश नहीं है, जहां के लोग सूर्य की गतिविधियों के बारे में इतना जानते हैं, जितना इंग्लैंड के लोग। इंग्लैंड में हर कोई जानता है कि सूर्य न तो कहीं उदय होता है, न ही अस्त। वह हर समय पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है। यह सही बात है, क्योंकि जहां कहीं भी हम गए, सुबह सूर्य निकलता और रात को डूबता दिखाई दिया- यहां की ही तरह।
- तब एक अंग्रेज ने एक छड़ी ली और रेत पर वृत्त खींचकर समझाने का प्रयास किया कि कैसे सूर्य आसमान में चलता रहता है और पृथ्वी का चक्कर लगाता रहता है। पर वह ठीक तरह समझा नहीं पाया और फिर जहाज के चालक की ओर इशारा करते हुए बोला- वह ठीक तरह समझा सकता है।
- चालक, जो काफी समझदार था, चुपचाप सुनता रहा था। अब सब लोग उसकी ओर मुड़ गए और वह बोला- आप सब लोग एक-दूसरे को बहका रहे हैं। आप सब धोखे में हैं। सूर्य पृथ्वी के चारों ओर नहीं, पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और चलते-चलते अपने चारों ओर भी घूमती है और चौबीस घंटों में सूर्य के आगे से पूरी घूम जाती है- केवल जापान, फिलीपींस, सुमात्रा ही नहीं, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका तथा अन्य प्रदेश भी साथ घूमते हैं, सूर्य किसी एक पर्वत के लिए नहीं चमकता, न किसी एक द्वीप या सागर या केवल हमारी पृथ्वी के लिए ही। यह अन्य ग्रहों के लिए भी चमकता है।
- आस्था के मामलों में भी- कनफ्यूशियस के शिष्य चीनी ने कहा- अहंकार ही है, जो लोगों के मन में दुराव पैदा करता है। जो बात सूर्य के संबंध में निकलती है, वही भगवान के मामले में सही है। हर आदमी अपना खुद का एक विशिष्ट भगवान बनाए रखना चाहता है- या ज्यादा से ज्यादा अपने देश के लिए हर राष्ट्र उस शक्ति को उस मंदिर में बंद कर लेना चाहता है।
- क्या उस मंदिर से किसी भी अन्य मंदिर की तुलना की जा सकती है, जिसकी रचना भगवान ने खुद सभी धर्मों और आस्थाओं के मानने वालों को एक सूत्र में बांधने के लिए की है?
- सभी मानवीय मंदिरों का निर्माण इसी मंदिर के अनुरूप हुआ है, जो कि भगवान की अपनी दुनिया है। हर मंदिर के सिंहद्वार होते हैं, गुंबज होते हैं, दीप होते हैं, मूर्तियां और चित्र होते हैं, भित्ति-लिपियां होती हैं, विधि-विधान-ग्रंथ होते हैं, प्रार्थनाएं होती हैं, वेदियां होती हैं और पुजारी होते हैं। पर कौन सा ऐसा मंदिर है, जिसमें समंदर जैसा फव्वारा है, आकाश जैसा गुंबज है, सूर्य-चंद्र और तारों जैसे दीप हैं और जीते-जागते, प्रेम करते मनुष्यों जैसी मूर्तियां हैं? भगवान द्वारा प्रदत्त खुशियों से बढ़कर उसकी अच्छाईयों के ग्रंथ और कहां हैं, जिन्हें आसानी से पढ़ा और समझा जा सके? मनुष्य के हृदय से बड़ी कौन-सी विधान-पुस्तक है? आत्म-बलिदान से बड़ी बलि क्या है? और अच्छे आदमी के हृदय से बड़ी कौन-सी वेदी है, जिस पर स्वयं भगवान भेंट स्वीकार करते हैं?
- जितना ऊंचा आदमी का विचार भगवान के बारे में होगा, उतना ही बेहतर वह उसे समझ सकेगा। और जितनी अच्छी तरह वह उसे समझेगा, उतना ही उसके निकट वह होता जाएगा।
- इसीलिए जो आदमी सूर्य की रोशनी को पूरे विश्व में फैला देखता है, उसे अंधविश्वासी को दोष नहीं देना चाहिए, न ही उससे घृणा करनी चाहिए कि वह अपनी मूर्ति में उस रोशनी की एक किरण देखता है। उसे नास्तिक से भी नफरत नहीं करनी चाहिए कि वह अंधा है और सूर्य को नहीं देख सकता। ये थे कनफ्यूशियस के शिष्य चीनी विद्वान के शब्द। कहवाघर में बैठे सभी लोग शांत और खामोश थे। फिर वे धर्म को लेकर नहीं झगड़े। न ही उन्होंने विवाद ही किया।
Thursday, July 05, 2007
Wednesday, July 04, 2007
दस जनपथ रबर स्टांप कंपनी प्राईवेट लिमिटेड
दस जनपथ रबर स्टांप कंपनी फिर से सुर्खियों में है। 2004 के आम चुनावों के बाद से यह कंपनी लगातार सुर्खियों में ही रहती है। 2004 में जब पहली बार इस कंपनी ने पी.एम. ऑफिस के लिए एक बढि़या, मेहनती, ईमानदार, वफादार रबर स्टांप जारी किया था तब से ही इस कंपनी की धाक जम गई थी। समझदार लोगों ने तभी अनुमान लगा लिया था कि अब यह देश रबर स्टांपों के बलबूते चलेगा। राष्ट्रपति चुनाव नजदीक हैं इसलिए इस कंपनी की सीएमडी सोनिया गांधी अपनी कंपनी का नया प्रॉडक्ट लांच करने जा रही हैं। जैसा कि नाम से ही विदित है यह कंपनी रबर स्टांप निर्माण में महारत रखती है इसलिए इस कंपनी का नया प्रॉडक्ट भी एक रबर स्टांप ही होगा जिसकी डिलीवरी सीधे रायसीना हिल्स की जायगी। इस नये प्रॉडक्ट में इस बार दस जनपथ की सहयोगी कंपनी है- इंडियन कम्युनिस्ट इंक। यह कंपनी भी अपने क्षेत्र की एक जानी-मानी कंपनी है, पर इसका बाजार पूंजीकरण बहुत कम है। इसीलिए इस कंपनी ने बाजार पर अपनी पकड़ बनाने के उद्देश्य से दस जनपथ से हाथ मिलाया है।
वैसे दस जनपथ रबर स्टांप कंपनी कोई नयी कंपनी नहीं है। पहले इस कंपनी का नाम द ग्रेट इंदिरा चाटुकार मैन्युफैक्चरिंग कंपनी हुआ करता था। तब यह कंपनी मुख्यत: चाटुकार, चमचे, नतमस्तक, दण्डवतप्रणाम वाले, जैसे प्रॉडक्ट ही बनाया करती थी। पर आजकल इस कंपनी की सीएमडी सोनिया गांधी ने रबर स्टांप निर्माण को अपना प्रमुख लक्ष्य बनाया है। बाकी प्रॉडक्ट्स का निर्माण भी कंपनी यथावत कर रही है।
हां तो बात हो रही थी कंपनी के नये प्रॉडक्ट की। प्रॉडक्ट का नाम है- प्रतिभा पाटिल। कंपनी जहां अपने प्रॉडक्ट को बढि़या, टिकाऊ, शानदार और लोकप्रिय होने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी कंपनियां इसे एक घटिया उत्पाद बताकर अपने उत्पाद की डिलीवरी होने की आस लगाये बैठी है। दक्षिण की एक कंपनी की मुखिया ने प्रतिभा पाटिल नाम के इस प्रॉडक्ट को देश के साथ मजाक तक बता दिया। ये मजाक है या नहीं ये तो पब्लिक जाने पर वे मोहतरमा खुद कितना बड़ा मजाक हैं यह भी गौर किया जाना चाहिए।
कुछ दिनों से इस बहुप्रचारित उत्पाद के समर्थक यह दावा कर रहे हैं कि इसकी लांचिंग महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर है क्योंकि प्रॉडक्ट का नाम किसी महिला से मिलता-जुलता लगता है। इस देश में महिला सशक्तिकरण चुटकियों में हो जाता है। किसी गधी को सजा-संवारकर बढि़या कुर्सी पर बिठा दो और हो गया देश की करोड़ों महिलाओं का सशक्तिकरण। इतना हो जाने पर क्या जरूरत रह जाती है लिंगभेद मिटाने, उनके सामाजिक उत्थान, उनकी शिक्षा, उन्हें बराबरी का हक दिलाने की। विदेशी सर्टिफिकेट ही तो लेना है। मिल जायेगा। अमेरिका में हिलेरी क्लिंटन मारती रहें हाथ-पैर, पर हमने उनसे पहले अपने देश की महिलाओं का सशक्तिकरण करके दिखा दिया और ये दिखावा ही तो परम सत्य है। बाकी तो सब छलावा है।
हमारे देश में लोग बेकार ही रोना रोते रहते हैं। पर देश की जो समस्याएं इतनी बड़ी लगती हैं वे वास्तव में उतनी बड़ी हैं नहीं। देखिये न हमारे देश की सबसे बड़ी कंपनी की सीएमडी सोनिया गांधी ने तो ये साबित करके भी दिखा दिया। महिला सशक्तिकरण का हल्ला सालों से मच रहा था और उन्होंने एक चुटकी में ही समस्या हल करके दिखा दी। लोग चिल्लाते रहते थे कि राजनीति से त्याग, समर्पण, कर्तव्य, नैतिक मूल्य सब नष्ट हो गये। पर सोनियाजी ने अपने ‘महान त्याग’ से सबको दिखा दिया कि भैया जब तक मुझ जैसी त्याग, बलिदान, नैतिकता की देवी इस देश में है राजनीति का स्तर बना रहेगा। कुछ समझदार यह बात समझ भी रहे हैं इसीलिए उन्होंने अभी से इस देवी के पोस्टर, कैलेंडर, फोटो आदि बनाकर पूजा भी शुरू कर दी है। बाकी बेवकूफ भी जितनी जल्दी इस बात को समझ ले उतनी ही जल्दी उनका कल्याण होगा।
अपन वापस लौटते हैं प्रॉडक्ट पर। पता नहीं क्यों बहुत से लोग प्रॉडक्ट की औपचारिक लांचिंग से पहले ही उसे डिफेक्टेड बताने में जुटे हैं। आजकल का मीडिया तो कुछ ज्यादा ही समझदार हो गया है। किसी की भी पोल-पट्टी पूछ लो इन गुरू लोगों से। किसी के चरित्र की भी खटिया खड़ी करवालो। पर अब ये गुरू लोग बता रहे हैं कि इस नये प्रॉडक्ट का चरित्र कुछ ठीक नहीं है। इसका चरित्र कमोबेश हमारे राजनेताओं से ही मिलता-जुलता है। ये भी सुना गया कि ये भूतों से भी बातें करता है और इसने इतिहास भी पढ़ रखा है। पर भाई अपनी तो इन लोगों को यही सलाह है कि जब कानूनी रूप से डिलीवरी का टेंडर सोनियाजी के पास है तो क्यों बेकार माथापच्ची करते हो। कहीं ये न हो कि दस जनपथ कंपनी आपके आरोपों से तंग आकर किसी साफ-सुथरे विदेशी रबर स्टांप को मंगवाकर डिलीवरी कर दे।
वैसे दस जनपथ रबर स्टांप कंपनी कोई नयी कंपनी नहीं है। पहले इस कंपनी का नाम द ग्रेट इंदिरा चाटुकार मैन्युफैक्चरिंग कंपनी हुआ करता था। तब यह कंपनी मुख्यत: चाटुकार, चमचे, नतमस्तक, दण्डवतप्रणाम वाले, जैसे प्रॉडक्ट ही बनाया करती थी। पर आजकल इस कंपनी की सीएमडी सोनिया गांधी ने रबर स्टांप निर्माण को अपना प्रमुख लक्ष्य बनाया है। बाकी प्रॉडक्ट्स का निर्माण भी कंपनी यथावत कर रही है।
हां तो बात हो रही थी कंपनी के नये प्रॉडक्ट की। प्रॉडक्ट का नाम है- प्रतिभा पाटिल। कंपनी जहां अपने प्रॉडक्ट को बढि़या, टिकाऊ, शानदार और लोकप्रिय होने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी कंपनियां इसे एक घटिया उत्पाद बताकर अपने उत्पाद की डिलीवरी होने की आस लगाये बैठी है। दक्षिण की एक कंपनी की मुखिया ने प्रतिभा पाटिल नाम के इस प्रॉडक्ट को देश के साथ मजाक तक बता दिया। ये मजाक है या नहीं ये तो पब्लिक जाने पर वे मोहतरमा खुद कितना बड़ा मजाक हैं यह भी गौर किया जाना चाहिए।
कुछ दिनों से इस बहुप्रचारित उत्पाद के समर्थक यह दावा कर रहे हैं कि इसकी लांचिंग महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर है क्योंकि प्रॉडक्ट का नाम किसी महिला से मिलता-जुलता लगता है। इस देश में महिला सशक्तिकरण चुटकियों में हो जाता है। किसी गधी को सजा-संवारकर बढि़या कुर्सी पर बिठा दो और हो गया देश की करोड़ों महिलाओं का सशक्तिकरण। इतना हो जाने पर क्या जरूरत रह जाती है लिंगभेद मिटाने, उनके सामाजिक उत्थान, उनकी शिक्षा, उन्हें बराबरी का हक दिलाने की। विदेशी सर्टिफिकेट ही तो लेना है। मिल जायेगा। अमेरिका में हिलेरी क्लिंटन मारती रहें हाथ-पैर, पर हमने उनसे पहले अपने देश की महिलाओं का सशक्तिकरण करके दिखा दिया और ये दिखावा ही तो परम सत्य है। बाकी तो सब छलावा है।
हमारे देश में लोग बेकार ही रोना रोते रहते हैं। पर देश की जो समस्याएं इतनी बड़ी लगती हैं वे वास्तव में उतनी बड़ी हैं नहीं। देखिये न हमारे देश की सबसे बड़ी कंपनी की सीएमडी सोनिया गांधी ने तो ये साबित करके भी दिखा दिया। महिला सशक्तिकरण का हल्ला सालों से मच रहा था और उन्होंने एक चुटकी में ही समस्या हल करके दिखा दी। लोग चिल्लाते रहते थे कि राजनीति से त्याग, समर्पण, कर्तव्य, नैतिक मूल्य सब नष्ट हो गये। पर सोनियाजी ने अपने ‘महान त्याग’ से सबको दिखा दिया कि भैया जब तक मुझ जैसी त्याग, बलिदान, नैतिकता की देवी इस देश में है राजनीति का स्तर बना रहेगा। कुछ समझदार यह बात समझ भी रहे हैं इसीलिए उन्होंने अभी से इस देवी के पोस्टर, कैलेंडर, फोटो आदि बनाकर पूजा भी शुरू कर दी है। बाकी बेवकूफ भी जितनी जल्दी इस बात को समझ ले उतनी ही जल्दी उनका कल्याण होगा।
अपन वापस लौटते हैं प्रॉडक्ट पर। पता नहीं क्यों बहुत से लोग प्रॉडक्ट की औपचारिक लांचिंग से पहले ही उसे डिफेक्टेड बताने में जुटे हैं। आजकल का मीडिया तो कुछ ज्यादा ही समझदार हो गया है। किसी की भी पोल-पट्टी पूछ लो इन गुरू लोगों से। किसी के चरित्र की भी खटिया खड़ी करवालो। पर अब ये गुरू लोग बता रहे हैं कि इस नये प्रॉडक्ट का चरित्र कुछ ठीक नहीं है। इसका चरित्र कमोबेश हमारे राजनेताओं से ही मिलता-जुलता है। ये भी सुना गया कि ये भूतों से भी बातें करता है और इसने इतिहास भी पढ़ रखा है। पर भाई अपनी तो इन लोगों को यही सलाह है कि जब कानूनी रूप से डिलीवरी का टेंडर सोनियाजी के पास है तो क्यों बेकार माथापच्ची करते हो। कहीं ये न हो कि दस जनपथ कंपनी आपके आरोपों से तंग आकर किसी साफ-सुथरे विदेशी रबर स्टांप को मंगवाकर डिलीवरी कर दे।
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व्यंग्य
Tuesday, July 03, 2007
जाओ नहीं देते ताज को वोट क्या कल्लोगे
ताज ने तो स्साला नाक में ही दम कर दिया। अखबार उठा के देखो तो ताज, इंटरनेट पर जाओ तो ताज और अब तो खुद को देशप्रेमी कहने वाले कुछ लोग सड़क पर भी हल्ला मचाते दिख जायेंगे कि ताज को वोट दो, वोट दो। यार हमारी मंद अकल में तो ये बातें समझ में ही नहीं आतीं कि ताज को वोट देने से कैसे देश का गौरव बढ़ जाता है? क्यों यह इमारत मोहब्बत की मिसाल है? देशप्रेम का इससे क्या लेना-देना है? खैर जब लोग कह रहे हैं तो कुछ सोचकर ही कह रहे होंगे।
भई अपनी अल्पबुद्धि से जब हमने विचार किया कि क्यों ताज को वोट दिया जाय तो पता चला कि कोई सेवन वंडर्स फाउंडेशन है जो दुनिया भर के कुछ चुनिंदा स्मारकों की कोई लिस्ट-फिस्ट बना रहा है और लोगों से वोटिंग करने को कह रहा है। अब देशभर में हल्ला हो रहा है कि हमारा ताज तो इस लिस्ट में आना ही

ताज को पता नहीं क्यों लोग सौदर्य, मुहब्बत और प्रेम की निशानी बताते हैं। मेरे ख्याल से तो ये इमारत मूर्खता और अहंकार का प्रतीक है। शाहजहां के पास दौलत थी तो उसने दुनिया को दिखाया कि मुझसे ज्यादा प्रेम आज तक किसी ने अपनी महबूबा से नहीं किया। यह कितनी बड़ी मूर्खता है कि आज भी लोग शाहजहां के मुहब्बत के किस्से बड़े फख्र से सुनते हैं और ताज को उसके अमर प्रेम का प्रतीक बताते हैं। मतलब जो अपनी मुहब्बत को दौलत में तौल दे, महंगी और सुंदर इमारत बनवा दे उसका प्रेम महान। हम जैसे लोग जो अपनी गर्लफ्रेंड को फाइवस्टार में एक बार डिनर भी न करा सकें, उनका प्रेम झूठा। इस हिसाब से तो नंबर दो की कमाई वाले नेता, अफसर जो अनाप-शनाप पैसा कॉलगर्ल्स पे लुटाते हैं और रखैलें रखते हैं, उनका प्यार भी महान। पर यहां प्यार कहां होता है पता ही नहीं चलता। साहिर लुधियानवी ने ताज के बारे में बिलकुल सही कहा है कि ‘एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर हम गरीबों की मुहब्बत का मजाक उड़ाया है’। सुमित्रानंदन पंत ने भी इसे देखकर कह दिया कि ‘हाय, मृत्यु का ऐसा सुंदर स्मारक और जीवन की ऐसी अवहेलना’।
ताज का निर्माण पूरा होने के बाद इसके वास्तुकार और निर्माण से जुड़े लोगों के हाथ काट दिये गये थे ताकि वे लोग इतनी खूबसूरत इमारत दुनिया में कहीं और न बना सकें। ऐसे में यह इमारत एक शासक की मुहब्बत की दास्तां बयां करती है या क्रूरता और अहंकार की? सुना है इसे बनाने में सोलह वर्ष का समय लगा था और अपार धन इसके निर्माण पर खर्च हुआ। ऐसे में यह इमारत प्रतीक है धन और समय की बर्बादी का। जनता का जो पैसा उसके कल्याण के लिए खर्च किया जाना चाहिए था, वह एक अहंकारी और मूर्ख बादशाह ने निर्जीव पत्थर की इमारत बनाने में लुटा दिया। हमारे बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि दूसरे के साथ बुरा करने वालों का कभी भला नहीं होता। वही हुआ भी। उसी के बेटे के कारण अपने जीवन के अंतिम वर्ष उसने कैद में गुजारे। चीन की महान दीवार के निर्माणकर्ता मिंग साम्राज्य का पतन होने में भी ज्यादा समय नहीं लगा। जिस दीवार पर के निर्माण के लिए उन्होंने किसानों से अनाप-शनाप लगान वसूला, उन्हीं के विद्रोह के कारण वह साम्राज्य धूल में मिल गया। पिरामिड बनाने वाली सभ्यता का पता ही न चला। रोम के कोलोसियम में क्रूर खेलों को देखने की शौकीन सभ्यता दफन हो गई।
वैसे मुझे ताजमहल से और शाहजहां से कोई दुश्मनी नहीं है। वाकई इसका स्थापत्य बेजोड़ है। संगमरमर का ऐसा सुंदर स्मारक संसार भर में नहीं है। पर मेरी आपत्ति इस बात को लेकर है कि लोग इसे राष्ट्रगौरव के साथ जोड़ने पर तुले हुए हैं। ताजमहल का नाम लिस्ट में आयेगा तो राष्ट्रगौरव बढ़ेगा वरना नाक के कट के गिर जाने का खतरा है। राष्ट्र का सारा गौरव मानो संगमरमर के पत्थरों में दबा पड़ा है। जब भी गौरव कुछ कम हुआ निकालकर कमी पूरी कर लेंगे। अखबार में आज बड़ी मजेदार बात पढ़ी। लिखा था- ‘बहादुर हिंदुस्तानियों ने देशप्रेम और गौरव के लिए अपना सब कुछ निछावर कर दिया था और हम आपको सिर्फ ताज को वोट देने के लिए कह रहे हैं’। 1947 के बाद से अब तक के वर्षों में खूब प्रगति हो गई। तब आदमी को देशप्रेम के लिए जान तक न्यौछावर करनी पड़ती थी। पर आज के युग में सब आसान हो गया है। बस एक एस.एम.एस करो और हो गया साबित कि आपमें ही है देशप्रेम का सच्चा जज्बा। यदि आपके पास इंटरनेट कनेक्शन है तो आपसे बड़ा देशभक्त तो कोई है ही नहीं। बस थोड़ी वोटिंग-सोटिंग कर डालो एक साइट खोल के। पर विडंबना ये है कि देश के उन करोड़ों लोगों के बारे में तो सोचिए जो मोबाइल और इंटरनेट तो क्या अपने लिए रोटी तक ‘अफोर्ड’ नहीं कर पाते। वे कैसे अपने देशप्रेम को साबित करें?
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