कभी-कभी आमिर खान को जूते मारने का मन करता है। गाना तो गा दिये- "दुनियां हसीनों का मेला मेले में ये दिल अकेला"। पर हमें ऐसा मेला कहीं नजर ही नहीं आया। हालांकि हमारे मित्र आमिर खान से पूरी तरह सहमत हैं और चूंकि दुनियां एक हसीनों का मेला है इसलिए उनकी भी मजबूरी है कि इस दुनियां का लुत्फ उठायें। हमें भी तो कोई इस मेले में ले चले !
Saturday, January 12, 2008
दुनियां हसीनों का मेला अब भी है
मेरे एक मित्र हैं- स्वभाव से ही मनचले। मनचलापन, टुच्चापन, मोटरसायकल लहराकर लड़की को छेड़ते हुए निकलना जैसे गुण उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगाते हैं। मुझे उनसे बड़ी जलन होती है क्योंकि चालू भाषा में बोलें तो उन्होंने अब तक के अपने जीवन में ऐश ही ऐश कीं पर हम जैसे लोग आमतौर पर जिंदगी को ऐश से जीने की बजाय ‘काटते’ हैं।
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5 comments:
हम भी जाएंगे, हम भी जाएंगे ऐसे मेले मे हमको भी ले चलो न ;)
सही लिखे हो भाई, कभी-कभी वाकई ऐसा लगता है ऐसे मित्रों को देखकर!!
यह गीत आमिर खान पर नहीं बॉबी डियोल पर फिल्माया गया है.
क्या टिप्पणी करें - यह तो सब्जेक्ट ही हमारे आउट आफ कोर्स है। आप तो संजीत की टिप्पणी पढ़ें। :-)
आह क्यों भर रहे हो भाई। जो, करना है करो। बस एक बात दिमाग में रहे संभालना भी खुद ही पड़ता है, दोहरी-दोगली जिंदगी के कमीनेपन को।
recently NY governor had to resign -
http://www.cnn.com/2008/POLITICS/03/12/spitzer/index.html?iref=nextin
and
http://www.cnn.com/2008/POLITICS/03/13/spitzer.kristen/index.html
it was similar kind of situation.
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