Saturday, June 07, 2008

कोई तो सुने इन दहेज कानून पीडि़तों की

ये शिकायत है अहमदाबाद के योगेश कुमार जैन की, जिनका 43 वर्षीय बड़ा भाई, जो कि पेशे से डॉक्‍टर है, विगत 16-17 वर्षों से मानसिक बीमारी से जूझ रहा है। उसकी पत्‍नी इन्‍हें ब्‍लैकमेल कर रही है कि अपनी मां के नाम पर जो मकान है, जिसकी कीमत तकरीबन 50 लाख रुपये है, उसे उसके नाम कर दिया जाए नहीं तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 498a के तहत उनकी शिकायत दर्ज कराएगी।

ऐसी ही कई कहानियॉं आपको मिल जाएंगी जिनमे पत्‍नी-पीडि़त पति के पास सिवाय घुट-घुटकर जीने के कोई विकल्‍प ही नहीं बचता। क्‍योंकि हमारे भारतीय कानूनों के अनुसार पीडि़त केवल पत्‍नी ही हो सकती है पति(या उसके परिजन) नहीं। हालांकि ये कानून बनाये तो गये थे समाज मे स्त्रियों के शोषण को रोकने और शोषि‍तों को सजा दिलवाने के लिए और इनका उपयोग आरोपियों को सजा दिलाने में हो भी रहा है। पर उन निर्दोष पतियों और उनके परिजनों का क्‍या जो बिना मतलब घुन की तरह पिस रहे हैं क्‍योंकि कानून मे उनके लिए कोई उपचार है ही नहीं ?

हालांकि ऐसे बेचारे पत्‍नी-पीडि़तों के किस्‍से तो बहुत हैं । पर मुद्दे की बात पर आते हैं। कुछ दिन पहले राजेश रोशनजी के ब्‍लॉग पर एक चित्र छपा था-


इसे पढ़कर लगा कि क्‍या वाकई दहेज संबंधी कानूनों ने कुछ पतियों का जीना मुहाल कर रखा है ?
हालां‍कि आस-पास के क्षेत्र में ऐसी एक-दो घटनाओं के बारे में सुना तो था पर नेट पर खोजा तो इस साइट पर काफी सारे मामले ऐसे देखने को मिले। भारतीय महिला से शादी करने से पहले सोचने की चेतावनी के साथ धारा 498a एवं घरेलू हिंसा अधिनियम के बारे में काफी सारी बातें कही गई हैं। और तो और कई शहरों में उपलब्‍ध टेलीफोन हेल्‍पलाइन के साथ-साथ यहां ऑनलाइन सलाह भी दी जा रही है। पर बेचारे पति करें भी तो क्‍या ?

आप सभी की प्रतिक्रियाओं के इंतजार में-