Sunday, December 23, 2007

चंबल में अब भी याद किये जाते हैं बिस्मिल


बहुत ही कम लोगों को यह मालूम होगा कि भारतीय स्‍वतंत्रता-संग्राम में अपने प्राणों की आहूति देने वाले अमर शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल की जड़ें मध्‍यप्रदेश के चंबल अंचल के मुरैना जिले से जुड़ी हुई हैं। बीते 19 दिसंबर को उनका बलिदान-दिवस था। इसी दिन उन्‍हें गोरखपुर जेल में अंग्रेजी शासन के दौरान फांसी दी गई थी। मुरैना जिले की अंबाह तहसील का गांव बरवाई बिस्मिल का पैतृक गांव है। बिस्मिल का जन्‍म शहाजहांपुर, उत्‍तरप्रदेश में हुआ पर उनके दादा श्री नारायणलाल यहीं पले-बढ़े और बाद में वे अपने दो पुत्रों मुरलीधर(रामप्रसाद बिस्मिल के पिता) और कल्‍याणमल के साथ शाहजहांपुर चले गए। अमर शहीद की याद में अब भी जिले में 19 दिसंबर को श्रद्धांजलि सभाओं और कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस दिन जिला कलेक्‍टर महोदय द्वारा स्‍थानीय अवकाश भी घोषित किया जाता है। इस बार भी हर वर्ष की भांति कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। मुरैना शहर की एक कॉलोनी में चंबल के इस शहीद की प्रतिमा लगी हुई है जहां हर तरह के छुटभैये, सड़कछाप नेता माला लेकर अखबार में छपने का अरमान लेकर ही सही श्रद्धांजलि देने इस बार भी पहुंचे। आगरा-मुंबई राष्‍ट्रीय राजमार्ग मुरैना शहर के एक मुख्‍य चौराहे से होकर गुजरता है। पिछले कई वर्षों से इस चौराहे पर बिस्मिल की प्रतिमा को स्‍थापित किये जाने की मांग उठती रही है जिससे राजमार्ग से होकर जिले से गुजरने वाले लोग भी उनकी मातृभूमि के बारे में जान सकें। कई बड़े-बड़े नेता इस बारे में यदा-कदा घोषणा तो करते रहते हैं पर किसी प्रकार का राजनीतिक हित न होने के कारण अभी तक प्रतिमा की स्‍थापना नहीं हो सकी है। भारत के इस वीर सपूत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं उनके मशहूर तराने- सरफरोशी की तमन्‍ना को यहां पेश कर रहा हूं जिसकी जोशीली पंक्तियां पढ़कर आज भी दिलों में देश के लिए मर-मिटने की आग धधक उठती है।


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है


वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,

हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है


करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,

देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है


रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में

लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है


अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़

एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है ।


ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,

अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,

आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-कातिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,

और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर,

खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,

सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,

और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,

जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.

जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


यूँ खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,

क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,

होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें कोई रोको ना आज

दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून

तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है

4 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

आपने जानकारी दी - यह पहले नहीं पता था बिस्मिल जी के बारे में।

परमजीत सिहँ बाली said...

बिस्मिल जी के बारे में आपनें जानकारी दी वह शायद हम जैसे बहुतों को नही है।शहीदों को सदा राष्ट्रीय स्तर पर याद किया जाना चाहिए।लेकिन आज सत्ता पर आसीन नेताओ को इस ओर ध्यान ही नही जाता।यह बड़े शर्म की बात है।जिस कारण नयी पीढी तक यह जानकारीयां नही पहुँच रही।जानकारी देने के लिए आपका बहुत=बहुत धन्यवाद।

Pratik Pandey said...

बिस्मिलजी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा। साथ ही बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़कर बहुत अच्छा लगा। लिखते रहिए।

Ashok Kumar pandey said...

bhuvanesh bhai
mai bhi gwalior se hi hun.
dekhen hamare blog
www.naidakhal.blogspot.com
www.asuvidha.blogspot.com

phone 9425787930