चंबल नदी में पाये जाने वाले जीवों की संरक्षा के लिए सन् 1979 में राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण की स्थापना की गई। 400 किमी से भी अधिक क्षेत्र में फैले इस अभ्यारण में मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश तीनों ही राज्यों का क्षेत्र सम्मिलित है। चंबल नदी भारत की सबसे कम प्रदूषित और समृद्ध जैव-विविधता वाली नदियों में से है। साफ पानी में पाई जाने वाली डॉल्फिन, जिसे गेंगेटिक डॉल्फिन कहा जाता है, भी इस नदी के पानी में अठखेलियां करती हैं। साथ ही दुर्लभ प्रजाति के कछुए भी यहां पाए जाते हैं। पर चंबल मुख्य रूप से घडि़यालों के लिए जानी जाती है घडि़यालों के अलावा यहां मगर भी पर्याप्त संख्या में हैं। 1979 में सेंचुरी घोषित होने के बाद से ही सरकार द्वारा इन जलीय जीवों के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। पर सरकारी प्रयासों के अलावा यह बात भी ध्यान में रखने योग्य है कि यह नदी दुर्गम बीहड़ों से होकर गुजरती है और इसके किनारों पर आबादी और शहरी आबादी नाम मात्र की है(राजस्थान के कोटा को छोड़कर)। इसके अलावा यह इलाका लंबे समय से मानवीय गतिविधियों से अछूता रहा है और चंबल के बीहड़ों में पाये जाने वाले डकैत गिरोहों के कारण भी लोगों को हमेशा इसके आसपास जाने में भय सताता रहा है। इस कारण भी यहां जलीय जीवों पर संकट के मौके ज्यादा नहीं आ पाये हैं। पर पिछले कुछ समय से सेंचुरी क्षेत्र मे मानवीय गतिविधियां बढ़ी हैं।
चंबल में पाये जाने वाले घडि़यालों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए मुरैना जिले के देवरी में और लखनऊ के पास कुकरैल में संरक्षण केंद्र स्थापित हैं। इन केंद्रों में घडि़यालों के अंडों को लाकर रखा जाता है और उनसे निकले बच्चों के नदी में रहने लायक होने के बाद वहां छोड़ दिया जाता है। चंबल सेंचुरी के अधिकारियों का कहना है कि वे इस क्षेत्र को इको टूरिज्म के लिए विकसित करना चाहते हैं। पर अभी तक इस क्षेत्र में पर्यटन को विकसित करने के पर्याप्त प्रयास नहीं हुए हैं। मुरैना स्थित घडि़याल केंद्र पर पर्यटकों को मोटरबोट द्वारा नदी की सैर कराने के इंतजाम हैं पर पर्यटकों की संख्या नगण्य सी ही बनी रहती है। मुरैना का देवरी घडि़याल केंद्र राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. 3 पर मुरैना शहर से 6-7 किमी की दूरी पर हैं। वहां जरूर घडि़याल और मगरमच्छ देखने के शौकीन पर्यटक देखे जा सकते हैं।
फोटो साभार: बीबीसी और द हिन्दू
5 comments:
बहुत ही सुन्दर लेख। भैया गांगेय डॉल्फिन कैसे देखने को मिल सकती हैं। बहुत बचपन में देखी थी घर के पास गंगा में। सोईंस बोलते थे हम। बचपन की याद है।
ज्ञानजी ये निश्चित रूप से तो नहीं पर कभी-कभार चंबल में पर्यटकों को नजर आ जाती है. चंबल के अलावा ये गंगा व ब्रह्मपुत्र में भी दिख जाती हैं. आजकल संख्या कम होने से किस्मत से ही नजर आती हैं.
बहुत विस्तार से जानकारी दी इसके लिये धन्यवाद। यदि सम्भव हो तो उन विशेषज्ञो की बात विस्तार से बताये जो किडनी की बीमारी की बात करते है।
यदि हम आज भी नहीं जागे तो कल बहुत देर हो जायगी।
मेरे परिवार में सब प्र्यावरण के प्र्ति जागरूक हैं अत: इस खबर को पढ कर हम सब को बहुत दुख हुआ.
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