पर्यावरण के प्रति जागरूक लोगों के लिए बाबा बलवीर सिंह सींचेवाल कोई अनजाना नाम नहीं हैं। बलवीर सिंह सींचेवाल ने पंजाब की एक नदी जो गंदा नाला बन चुकी थी, को अपने प्रयासों से पुनर्जीवित करके दिखा दिया कि अनियंत्रित व अनियोजित विकास के इस यु्ग में यदि समाज और सरकारें अपनी भूमिका का ठीक से निर्वहन करें तो सही अर्थों में विकास की निर्मल गंगा बहाई जा सकती है। पर विडंबना है कि वर्तमान में जारी विकास हर तरह से पर्यावरण के लिए अभिशाप साबित हो रहा है और यदि हमने विकास की इस अनवरत प्रक्रिया में अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से स्वीकार नहीं किया तो बहुत कुछ हमेशा के लिए पीछे छूट जाएगा। 160 किलोमीटर लंबी काली बेई नदी पंजाब में सतलज की सहायक नदी है। एक समय था जब 32 शहरों की गंदगी और समाज की उपेक्षा की मार सहती इस नदी की हालत देश की अनगिनत नालों में तब्दील हो चुकी नदियों की तरह ही थी। यह वही नदी है जिसके किनारे सिखों के गुरू नानकदेवजी को दिव्यज्ञान प्राप्त हुआ था। पर समय के साथ देश की अन्य नदियों की तरह ही इस नदी के लिए भी अस्तित्व का संकट पैदा हो गया। तब इस नदी के पुनरुद्धार करने का बीड़ा उठाया बाबा बलवीर सिंह ने।
पंजाब के एक छोटे से गांव सींचेवाल के इस संत ने अपने बलबूते इस नदी को साफ करने का बीड़ा उठाया। संत बलवीर सिंह ने अपने शिष्यों के साथ इस काम को अंजाम देने के साथ-साथ अपने गुरुद्वारे में आने वाले श्रद्धालुओं को इस नदी के उद्धार के लिए जुट जाने को प्रेरित किया। उन्होंने लोगों को समझाया कि वे गुरुनानक के चरण स्पर्श प्राप्त इस नदी की सफाई कर भगवान की सच्चे अर्थों में सेवा कर सकेंगे। सन 2000 में उनके द्वारा शुरू किये गये प्रयासों के कुछ वर्षों में ही इसका असर दिखा और आज इसकी निर्मल धारा को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता कि बिना कुछ खर्च किये केवल मानवीय प्रयासों से कैसे एक खत्म हो चुकी नदी को पुनर्जीवन दिया जा सकता है।
संत सींचेवाल का कालीबेई के लिए किया गया यह योगदान आज नदी संरक्षण में लगे लोगों, सरकारों और एजेंसियों के लिए प्रेरणा बन गया है। तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने जब इस बारे में सुना तो वे खुद इस अनुपम प्रयोग को देखने पहुंचे। उनके भाषणों में अक्सर संत सींचेवाल और कालीबेई का जिक्र रहता है। फिलीपींस सरकार ने भी उनके इस प्रयोग के बारे में जानकर मनीला की एक नदी के पुनरुद्धार के लिए उनसे सहयोग मांगा है।
गंगा और यमुना की सफाई पर करोड़ों रुपए डकार जाने वाली सरकारों, एनजीओ और हम खुद जो गंगा को गंगामैया कहते हैं क्या अब भी उदासीन बने रहेंगे ?
2 comments:
वस्तव में सींचेंवालजी जैसे लोग भविष्य की आशा की किरण हैं।
bahut sahi lekh likhaa hai janaab,
prayaas jaari rakhein
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