आज के दैनिक भास्कर में वेदप्रताप वैदिक ने भारतीय राजनीति में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की भूमिका के बारे में लिखा है...उनकी भूमिका और प्रबल हो ऐसा लोकतंत्र और राष्ट्र दोनों के हित में है ऐसा वे कहते हैं...साथ ही सबसे बड़ा मुद्दा उन्होंने उठाया है दोनों पार्टियों के अंदर के आंतरिक लोकतंत्र का...उन्होंने भारतीय जनता के ऊपर थोपे हुए नेता जो कि जनता के अपने नहीं हैं, द्वारा शासन किये जाने की विडंबना पर चिंता व्यक्त करने के साथ बताया है कि इन नेताओं का रिमोट कंट्रोल कहीं और ही है.
वैदिकजी की बात से असहमत होने की कोई वजह नहीं है परंतु जो बातें उन्होंने कहीं यदि ऐसा वाकई में संभव हो जाए और गांधी परिवार कांग्रेस को एवं अन्य पार्टियों के अपने-अपने रिमोट कंट्रोलर उन्हें रिमोट कंट्रोल से संचालित करने की बजाय खुला छोड़ दे और आंतरिक लोकतंत्र विकसित होने देने लायक परिस्थितियां उत्पन्न हो सकें तब क्या स्थिति होगी क्या इसकी कल्पना नहीं की जानी चाहिए?.....हालांकि जो रिमोट कंट्रोल वाली कहावत है वह केवल कांग्रेस में ही नहीं है...ऐसा दल जिसका केवल एक ही सांसद या दो-चार ही एमएलए होंगे वहां भी यही स्थिति देखने मिलेगी.
एक साधारण व्यक्ति जो थोड़ी-बहुत राजनीति में दिलचस्पी लेता है वह भी निश्चित रूप से इसी निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि हर पार्टी में जो आका बैठा हुआ है यदि उसकी पार्टी पर पकड़ ढीली हो जाए या उसके बिना पार्टी की कल्पना करके देखें तो हमें केवल और केवल अराजकता नजर आयेगी...हां कुछ समय के लिए ये हो सकता है कि यदि उनके पास सत्ता है तो वे अपने हितों को ध्यान में रखकर एक-दूसरे से चिपके रहें....पर अंतत: सिर-फुटौव्वल ही होना है...उदाहरण देने की यहां आवश्यकता यों नहीं कि ये सभी बातें लोगों ने विगत काफी समय से अनुभव की ही होंगी....हमारा राष्ट्रीय चरित्र ही इस प्रकार का है कि हम कभी विचारधारा को तवज्जो दे ही नहीं सकते...हमें कोई मसीहा चाहिए, हमें चमत्कारिक नेता चाहिए, हमारी आस्थाओं में सामंतवाद अभी भी जिंदा है....व्यक्तिपूजा से दूर हम रह नहीं सकते.... ऐसी स्थिति में सत्ता की चाबी जनता से कुछेक लोगों या परिवारों तक पहुंच जाना सहज ही है...फिर वे चाहे उसका कैसा ही दुरुपयोग करें...हम एक व्यक्ति विशेष को इतना शक्तिशाली बना देते हैं कि पार्टी में बाकी लोगों को यदि अपना अस्तित्व कायम रखना है तो उसको शीश नवाना ही पड़ेगा, इसीलिए कोई पार्टी व्यक्ति-विशेष के रिमोट से संचालित उपकरण बनकर रह जाती है.....
जब ऐसी पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र लागू कर दिया जाए तो इतने मतभेद उभरकर सामने आयेंगे कि उसका हाल जनता पार्टी जैसा हो जाएगा...जैसा आज लोगों को पता ही नहीं कि कौन सी जनता पार्टी जनता पार्टी है और बाकी जनता पार्टियां जाने कितने व्यक्ति-विशेषों की तिजोरियों में बंद हैं...
बड़ी ही विचित्र विरोधाभासी स्थिति है....जैसा कि वैदिक कहते हैं कि सही मायने में लोकतंत्र स्थापित होने के लिए जरूरी है कि पार्टियों में भी आंतरिक लोकतंत्र हो....वाकई ये एक आदर्श स्थिति है...परंतु हमारी भारतभूमि पर रोना ये है कि यदि ऐसा आंतरिक लोकतंत्र पार्टियों में हो जाए तो ये सब लड़-झगड़कर लोकतंत्र का सब रायता ही फैला दें...और पार्टी के इतने टुकड़े कर दें कि पता ही ना चले कि हम किस पार्टी और किस आंतरिक लोकतंत्र की बात कर रहे थे... इसलिए कम से कम रिमोट कंट्रोल से ही सही और दिखावे के लिए ही सही लोकतंत्र तो चल ही रहा है...बाकी वैदिकजी के लेख पर यही कहा जा सकता है कि 'दिल के खुश रखने को वैदिकजी ये खयाल अच्छा है'
4 comments:
किसी भी तरह खुश रह लें..रिमोट तो बड़ी बात हो गई..अभी तो बिना किसी कंट्रोल के भी चल रहा है.
मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.
नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
वास्तव में हमारी राजसत्ता सामंतों,इजारेदार पूंजीपतियों और विदेशी पूंजी का प्रतिनिधित्व करती है तो उन के गुण पार्टियों में मौजूद रहेंगे। लेकिन वास्तविक जनतंत्र के लिए पार्टी का अंदरूनी लोकतंत्र जरूरी है। उसे विकसित करना ही होगा।
बकील साब, फ़ोटू तो घणा चोक्खा लगायो है… कारे कोट मे जंची रिया हो…
पार्टी संचालन एक ठोस व्यक्ति या समूह की लीडरशिप से ही सम्भव है।
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