Saturday, January 16, 2010

अच्‍छा एक्‍टर होना ही सफल होना है

फलां व्‍यक्ति कैसा है....उसमें क्‍या अच्‍छा है...क्‍या खराब है इसका विश्‍लेषण सतत चलता रहता है उसके आसपास के जनमानस में....और एक ही व्‍यक्ति के बारे में सामान्‍यतया अलग-अलग राय बना लेते हैं लोग...जिनको उससे बेहतर रिस्‍पांस मिल रहा है उसके लिए वो बढि़या है...भले वो उसे केवल मतलब निकल जाने तक या मतलब का होने से ही ऐसा कहते है...बाकी कुछ लोग उसकी बुराई करते भी पाये जा सकते हैं...जरूरी नहीं कि उसमें बुराई हों भी ना.
जैसे एक आदमी ऑफिस में अच्‍छा बॉस हो सकता है पर बीवी के लिए अच्‍छा पति नहीं....
साधारणतया कहा जाता है कि जो व्‍यक्ति अच्‍छा इंसान होता है वो सभी के लिए अच्‍छा होता है....हो सकता है कुछ लोग उसे अपने माफिक ना पाकर उसे अच्‍छा ना भी कहें...
पर बहुमत ऐसे लोगों का ही है जिनका व्‍यवहार किसी व्‍यक्ति के प्रति एक तरह का है तो दूसरों के प्रति दूसरी तरह का, परिस्थिति के अनुसार भी व्‍यवहार में परिवर्तन संभव है....कई लोग काम के दिनों में बहुत चिढ़चिढे़ होते हैं और छुट्टी में बड़े खुशमिजाज इंसान की तरह पेश आते हैं...कई बातें हैं जो इंसानी व्‍यवहार पर प्रभाव डालती हैं..

पर भाई आजकल सेल्‍फ इंप्रूवमेंट बुक्‍स का जमाना है....कई लोग खुद के व्‍यवहार में सकारात्‍मक बदलाव की खातिर इनको आजमाते भी हैं....मैं तो मानता हूं ये सब बहुत मजबूत इच्‍छाशक्ति वाले लोगों के बस की बात है कि खुद की कमियां खोजकर, खुद पर कंट्रोल कर और आदतों में बदलाव लाकर खुद को बेहतर बनाने की प्रक्रिया में लगे रहते हैं
पर ये तथ्‍य तो स्‍वीकार करना ही पड़ेगा कि ज्‍यादातर लोग अपनी आदतों से मजबूर होते हैं....वे खुद को बदल पाने में खुद को लाचार ही महसूस करते हैं या इसकी ओर ध्‍यान नहीं देते या उनको इस बारे में सोचने का वक्‍त ही नहीं..

इन सबके बीच सबसे महत्‍वपूर्ण बात जो हमारे अंदर घूमती रहती है कि हमें अपने प्रोफेशन में, दिनचर्या में और बाकी बहुत से कामों में बहुत से लोगों से डील करना होता है और अपना काम निकालना होता है....ऐसे में हमें खुद के लिए बेहतर नतीजे पाने के लिए क्‍या करना होगा?... ये सबसे ज्‍यादा जरूरी बात है....

हमें खुद को अलग-अलग परिस्थिति और अलग-अलग लोगों के सामने खुद का प्रिजेंटेशन ऐसा रखना होगा कि हमारा काम निकल जाए और सामने वाले से हम जो चाहते हैं वो पा सकें.....चूंकि हमारा जो प्रयास है वो सफलता के लिए हो रहा है सो उसके माफिक हमें खुद के व्‍यवहार में कुछ बातें शामिल करनी होंगी..

हमें ऐसे लोगों से भी काम निकालना है जिन्‍हें हम कतई पसंद नहीं करते...और ऐसे लोगों से भी जो बहुत ही अकड़ू और ढीठ मिजाज के होते हैं....पर हमारी मजबूरी है कि हमें उनके साथ काम करना है या उनके साथ रहना है...हर जगह हमें एक बैलेंस बनाकर चलना है....जिस व्‍यक्ति को हमें गाली देने का मन हो रहा है उसके साथ बहुत ही भद्र तरीके से व्‍यवहार कर हमें तालमेल बिठाना पड़ता है और जहां जरूरत स्‍ट्रेटफॉरवर्डनेस की है वहां वैसे ही बनना पड़ेगा, कभी जानबूझकर किसी को इग्‍नोर भी करना पड़ता है उसे कुछ समझाने हेतु और कभी जिनकी चांद पर जूते बजाने का मन होता है उनके चरण-स्‍पर्श भी करने पड़ सकते हैं.....

कुल मिलाकर लुब्‍बेलुआब ये है कि हमें सामने आने वाली परिस्थिति में से अपना रास्‍ता बनाते हुए निकल जाना है तो हमें उसके अनुरूप व्‍यवहार करना होगा....हम अक्‍सर नेताओं को गालियां देते हैं पर कभी नजर डालिए अपने आसपास के नेता प्रजाति के जीवों पर...कई बार जब हम उनसे मिलते हैं तो वे हमें अपने व्‍यवहार से, विनम्रता से गदगद कर देते हैं...वे वाकई में इंसान कैसे भी होने के बावजूद एक्‍टर बड़े कमाल के होते हैं....और यही स्किल उनकी सफलता का राज भी है..

हमें भी हम जैसे हैं, जो हैं के बजाय खुद को इस तरह से पेश करने की कला सीखनी चाहिए कि सामने वाले को वह जंचे...भले हम उससे बात तक नहीं करना चाहते पर उसे हमारी बातों से ऐसा लगे कि हम उससे बात करके, उससे मिलकर बड़े खुश हैं...उसे ऐसा एहसास हो कि हमने उसे बड़ी तवज्‍जो दी....बाकी चाहे अंदर से मन कह रहा हो कि लगाओ चार जूते साले की चांद में....नैतिकतावादी या आदर्शवादी टाइप की प्रजाति मेरी बातों से कुछ बवाल मचाने लायक मसाला खोज सकती है....पर सौ में से निन्‍यानवे बेईमानों के देश में आपको रहना है और इन्‍हीं के बीच में रहना है और इनसे ही काम निकालना है तो आपके लिए यही सही रास्‍ता है कि सबसे बनाकर चलें...नहीं तो खामखा आप अपने लिए रास्‍ते बंद कर लेंगे....
और रही गलत-सही की बात तो इस देश में इतना कुछ गलत हो रहा है कि भगवान के करे से भी नहीं रुकने वाला...हमें बस ऐसे में ये खयाल रखना है कि हम कहीं आदर्शवाद के चक्‍कर में पड़कर खुद का ही नुकसान ना कर बैठें और खुद को चिड़चिड़ा, अलग-थलग कहलाये जाने से बचा सकें.....
ऐसे में आपकी बेहतर एक्टिंग स्किल ही आपके अस्तित्‍व को बचा पायेगी. क्‍या खयाल है?

( उक्‍त विचारों में डेल कारनेगी के साहित्‍य और स्‍वयं के अनुभवों की बैठे-ठाले खिचड़ी बन गई है। बाकी आगे बहस की गुंजाइश है सो फुरसत मिलने पर...)

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

काम निकालने को गधे को भी बाप कहना पड़ता है। बाप कहने के बाद भी वह रहता गधा ही है, आदमी नहीं हो जाता।
तय आप को करना है कि बाप कह कर काम निकालना है या कन्नी काट जाना है। हाँ ऐसी युक्ति निकाली जा सकती है कि बाप कहे बिना भी काम निकल जाए।

Neeraj Rohilla said...

The secret of success is sincerity. Once you can fake that you've got it made.

Jean Giraudoux (1882 - 1944)