जी हां यदि आप पुरुष हैं और अपने किसी पुरुष मित्र के साथ उसके कंधे पर हाथ रखे हुए, सटकर या बहुत बिंदास मजाक करते हुए किसी सार्वजनिक जगह से गुजर रहे हैं तो लोगों की नजरें आप पर हैं।
पिछले कुछ समय से खुले या आधुनिक समाज में समलैंगिकता कोई बहुत दबा-छिपा मुद्दा नहीं रह गया है। आजकल ऐसे लोग भी आपको मिल जायेंगे जो खुलेआम इसे स्वीकारते भी मिल जायेंगे। पहले इस प्रकार के मुद्दों पर चर्चा करना तक ठीक नहीं समझा जाता था वहीं आज इसके समर्थन में लोग खुलकर सामने आने लगे हैं। इसलिए लोगों को दो समान लिंग के लोगों के घनिष्ठ व्यवहार को देखकर ये अनुमान लगाने में भी देर नहीं लगती कि दोनों समलैंगिक हैं।
हाल ही में मेरे साथ भी ऐसा ही एक वाकया हुआ। मैं और मेरा एक मित्र दोनों अक्सर शाम को शहर की सड़कों पर घूमने निकलते हैं। एक दिन रात को हम ऐसे ही सड़कों पर बिंदास गप्पबाजी करते घूम रहे थे। वहां से गुजरते हुए हमारे किसी दोस्त ने हमें देखा होगा और तुरंत एस.एम.एस किया- आर यू गे ? मैसेज पढ़कर अपन ने भी काउंटर मजाक किया- यस वी आर, वाई डोंट यू जॉइन अस। अब बंदा समझ गया कि अईसा मजाक नहीं करना चाहिए। उसने तुरंत पल्ला झाड़ा- सॉरी, आइम स्ट्रेट।
ये तो थी मजाक की बात। आजकल फिल्मों में भी इस प्रकार के प्रश्न अक्सर सुनने को मिल जाते हैं। इंद्र कुमार की भी एक फिल्म आई थी- मस्ती, उसमें भी सतीश शाह रितेश देशमुख और आफताब शिवदासानी को गे समझकर उनसे दूर भागता फिरता है।
पहले और आज भी छोटे कस्बों में यदि आप सार्वजनिक स्थान पर किसी लड़की के साथ देखे जाएं तो लोग कहेंगे- जरूर सेटिंग होगी साले की। भले ही आप अपनी किसी मित्र या रिश्तेदार के साथ हों। पर आजकल तो लड़कों के साथ भी घूमना सेफ नहीं है बाबा। लोग गे का ठप्पा लिए साथ घूम रहे हैं। संभलिए कहीं आप पर भी ये ठप्पा न लग जाए। और कहीं आपकी गर्लफ्रेंड को शक हो गया तो आपकी छुट्टी।
7 comments:
बीमार समाज की बीमार मानसिकता है ये और कुछ नहीं, सिर्फ़ शरीर की भाषा जानने वाले आधुनिकों के गंदे दिमाग की उपज…
सही है!!
"गे" से याद आया,अक्सर शहर में कोई आयोजन चल रहा हो तो मैं और मेरा एक दोस्त साथ में मस्ती करने जाते हैं पिछले दिनों उसकी गैरहाजरी में मैं अकेले एक आयोजन में गया। जाकर वहीं से उसे फोन किया वह इंदौर में बैठा हुआ था, फोन पर मैने उसे कहा……वी आर नॉट गे बट आई एम मिसिंग यू हियर…… और फिर दोनो ही फोन पर ठठाकर हंस पड़े।
क्या वास्तव में यह एक मुद्दा बन गया है? मुझे तो मालूम नहीं था। और् आप कहते हैं कि यह महानगरीय नहीं छोटे कस्बों की भी बात है। क्या कहें अपनी इग्नोरेंस को।
सुरेश जी ने सो टके की बात कह दी,अब जिन के दिमाग मे भरा ही कचरा हे उन्हे तो दिखे गा भी कचरा, जब हम भारत मे थे, कई बार रात को कोई रिश्तेदार आचनक आ जाता या कोई दोस्त तो उस समय हम एक ही बिस्तर पर सो जाते थे, आज के जमाने के हिसाब से तो हम भी...
अभी जो बीमार समाज की बीमार मानसिकता हे यह हमे किस ओर लेजा रही हे...
बहुत सही फरमाया आपने. मैने भी यह बात नोट की है.
अरे ये 'गे' और 'स्ट्रेट' तो फ़ालतू बातें हैं. प्यार में भला कोई 'गे' या 'स्ट्रेट' होता है, प्यार में तो इंसान बस 'प्रेमी' होता है, खेल में खिलाड़ी, मस्ती में मस्त, और लालसा में कामुक! ये 'गे' और 'स्ट्रेट' तो छोटी बात है, पिछले पचास साल में आई है, और अगले पचास साल में चली जायेगी. सभी लोगों को अपनी ज़िन्दगी जीने की आज़ादी होनी चाहिए - उसमें चाहे वे पुरुष से प्रेम करें, या औरत से, या हिजड़े से, जिससे भी. दिल लुटाएं, या लंगोट के कच्चे हों, जिसके लिए भी, तो उसमें किसको क्या परेशानी :) हमें तो 'गे' और 'स्ट्रेट' का पूरा मसला ही अजीब लगता है!
सच में बीमार हैं वे लोग जो एक व्यक्ति के गे होने का अर्थ यह लगा लेते हैं कि वह शरीर की भूख से ग्रस्त है। और जिन सज्जनों को अपने दोस्तों के साथ घूमने फिरने में संकोच होता है काश वे अपनी महिला मित्रो के साथ घूमने में भी संकोच अनुभव करते!
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