Sunday, October 01, 2006

मेरे की-बोर्ड से निकली पहली कविता

चिड़िया

अभी हाल ही तक
हाथों से आँखें मलते हुए
भोर के सूरज के साथ
देखा है उसे
अपने ही आँगन में
फुदकते हुए
चीं-चीं, चूं-चूं करते हुए
सुना है उसे
उसकी वो मीठी आवाज जो
शब्दों के मायाजाल से मुक्त
दिल तक पहुंचती थी
और भर देती थी उसे ताजगी से

पर ना जाने कुछ समय से
कहाँ चली गयी है वो
क्या लगता है उसे हमसे डर
या हमारी मृत संवेदनाओं से
या पाती है खुद को पिछड़ा
मोबाइल और कम्प्यूटरों की इस दुनिया में
शायद गुम हो गयी है उसकी आवाज
इन मोटरकारों और
मोबाइलों की रिंगटोनों के बीच

क्यूं नही लाती वो अब
एक-एक तिनका हमारे घर में
शायद खुद को पराया समझने लगी है
या हमने ही कर दिये हैं
सब दरवाजे बंद
क्यूं नही आती वो अब
हमारी वीरान दुनिया में
शायद हमारी तेजरफ्तार जिंदगी से
कदमताल मिलाने की कोशिश में
थक गये हैं उसके पंख

1 comment:

गिरिराज जोशी said...

बहुत खूब!!!
लिखते रहें भुवनेशजी ॰॰॰
शुभकामनाएँ।