Thursday, June 07, 2007

खेती इन बॉलीवुड स्‍टाइल


ये लो बिग बी के बाद अब अपने देशभक्‍त आमिर खान भी देश की खाद्यान्‍न समस्‍या दूर करने निकल पड़े। उनकी मंशा है कि उन्‍हें भी पुणे में खेती के लिए जमीन मिले ताकि राजस्‍थान के साथ वे महाराष्‍ट्र में भी खाद्यान्‍न समस्‍या से निपट सकें। बाकी बालीवुड तो पहले से है ही लाइन में और हो भी क्‍यों न बिग बी खुद उनका नेतृत्‍व करने जो निकले हैं।

मुझे एक पुरानी फिल्‍म का गाना याद आ रहा है जिसमें नायक लोगों को मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती ओओओओओ आआआआआ....... जैसा कुछ गाकर बताता है कि भाई लोग बहुत सोना दबा पड़ा है इस धरती में निकाल लो और बन जाओ खुशहाल। पर यहां तो गंगा एकदम ही उल्‍टी बह रही है। बिग बी बालीवुड से कह रहे हैं कि आओ जितना भी कमाया है उसमें से कुछेक करोड़ अपनी धरती मां को भी अर्पित करो और किसान बनके अपनी धरती मां की और देशवासियों की सेवा करो। पर भैया ये विदेश में शूटिंग करने वाले हमेशा ही भूल जाते हैं कि हिंदुस्‍तान में अच्‍छे काम करने वालों की कौन कदर करता है। इधर हमारे मनमोहन सिंह गला फाड़ के चिल्‍ला रहे हैं कि देश को खाद्यान्‍न समस्‍या से निपटने के लिए एक और हरित क्रांति की जरूरत है पर जब कांग्रेस में ही उनको कोई नहीं पूछता तो कोई और क्‍यों पूछने लगा। फिर भी ये बेचारे फिल्‍मी लोग अपने खून-पसीने की कमाई लगाकर प्रधानमंत्री के कहने पर खेती के लिए जमीनें खरीद रहे हैं कि आगे चलकर प्रधानमंत्री को शर्मिंदा न होना पड़े कि उनकी किसी ने सुनी ही नहीं।


पर आग लगे हिंदुस्‍तान में बने उल्‍टे-सीधे कानूनों को जो कुछेक अच्‍छे लोगों को उनका काम भी ठीक से नहीं क‍रने देते। अमिताभजी ने जब उन्‍होंने सुना कि महाराष्‍ट्र के बाद उत्‍तरप्रदेश के किसान भी आत्‍महत्‍या करने लगे हैं तो वे निकल पड़े लोगों को संदेश देने कि अमीरजादों जरा बेचारे गरीब किसान की भी हालत देखो। वो बेचारा भुखमरी के कगार पर है। सरकार नहीं दे रही तो हम ही उसे थोड़ा अन्‍न उगाकर दे दें। कितनी महान भावना है ये परोपकार की। पता लगते ही उधर छोटे भाई अमर सिंह ने बुला लिया कि भाईसाहब आपने वो कहावत तो सुनी है न- चैरिटी बिगिंस एट होम। अमिताभ भी समझ गये कि जब खुशहाली लानी ही है तो क्‍यों न पहले अपने ही घर को खुशहाल बनाया जाये और कूद पड़े हल लेकर बाराबंकी में। पर छोटे भाई का तो कर्तव्‍य ही है बड़े भाई की सेवा करना। सो छोटे भैया बोल पड़े कि आप कहां यहां उत्‍तरप्रदेश में फंसे हैं। यहां का काम तो हम देख ही रहे हैं आप जाईये आपका कार्यक्षेत्र बड़ा है, खुशहाली की ये लहर बाकी देश में भी चलाईये। बिग बी को बात जंच गई सो वो लगे पुणे में जुताई करने। पर उधर उनके बाडी गार्ड जैसे भाई के बुरे दिन आये तो क्‍या यूपी और क्‍या महाराष्‍ट्र दोनों जगह से उन्‍हें नोटिस मिल गया कि बंद करिए ये बालीवुडिया खेती और खिसकिए यहां से। जाकर सिनेमा में लोगों का मनोरंजन करिए। अब पूरा प्रशासन पड़ा है उनके और बालीवुड के पीछे डंडा लेके कि इतनी सालों से हमने इस देश में खुशहाली को फटकने भी नहीं दिया और तुम सालों खुशहाली लाकर, ज्‍यादा अन्‍न उगाकर हमें बदहाल करना चाहते हो।

मेरे ख्‍याल से माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए और यह आदेश पारित करना चाहिए कि जो फिल्‍मस्‍टार खेती का काम करना चाहें उनको इसका पूरा हक मिले। आखिर जो लोग रंग दे बसंती, लगे रहो मुन्‍नाभाई आदि फिल्‍में बनाकर देशभक्ति का नायाब उदाहरण देश के सामने प्रस्‍तुत करते हैं क्‍या उन्‍हें इतना भी हक नहीं कि वे अपनी इच्‍छा से खेती कर पायें। फिर भी प्रधानमंत्री के उस बयान से, जिसमें उन्‍होंने खेती में आवश्‍यकता से अधिक लोगों के लगे होने की बात कही थी, न्‍यायपालिका और संसद में टकराव हो सकता है क्‍योंकि वे नहीं चाहेंगे कि कुछ और लोग आकर खेती करें। पर मनमोहनजी चिंता मत करिए ये फिल्‍मी किसान आत्‍महत्‍या नहीं करने वाले जो आपको इन्‍हें मुआवजा देना पड़े और लानत झेलनी पड़े। इसलिए एक बीच का रास्‍ता तो निकलना ही चाहिए जिसमें सरकार खेती को सेलेब्रिटी स्‍टेटस दिलाने के लिए बाकायदा कुछ भूमि को बालीवुड के लिए आरक्षित कर दे। इससे दो फायदे तो तुरंत होंगे कि बालीवुड के लोगों की मेहनत का अन्‍न देश को मिलेगा और उस अन्‍न की नीलामी से मिलने वाले राजस्‍व से देश में कई नयी विकास परियोजनाएं शुरू की जा सकेंगीं। जिन लोगों में खरीदने की कूवत होगी वे शान से कहेंगे कि भई अपन तो बासमती की बजाय आमिर खान ब्रांड चावल खाते हैं या फिर मैं तो अमिताभ के खेत में उगा गेंहूं ही खाता हूं। कोई कहेगा- आइम सो चूजी एबाउट माइ फूड ब्रांड, ऑलवेज परचेज द वेजीटेबल्‍स ऑफ सलमानस फार्म।


एक और फायदा होगा इसका कि खेती-किसानी जैसे कार्यों को स्‍वत: ही सेलेब्रिटी दर्जा मिल जायेगा। न्‍यूज चैनल का पत्रकार खेत में जाकर किसान से बात करेगा और कुछ इस प्रकार के सवाल-जवाब होंगे-


प्रश्‍न- कैसा महसूस कर रहे हैं आप खेती करते हुए?
उत्‍तर- देखौ भैया हम बस खेती करत हैं महसूस-फहसूस नाहीं करत।


प्रश्‍न- आजकल आपकी कौन-कौन सी फसलें फ्लोर पर हैं?
उत्‍तर- भैया ई फ्लोर का है?


प्रश्‍न- मतलब आपकी आगे कौन-कौन सी फसलें बाजार में आने वाली हैं?
उत्‍तर- जो फसल मौसम पे आये हैं सो ही इस बरस भी आये हैं।


प्रश्‍न- जब आपकी कोई फसल दूसरों की फसल से ज्‍यादा चलती है तो कैसा लगता है
?
उत्‍तर- भैया ये फसल का चलना-उलना अपन नहीं जानत।


प्रश्‍न- क्‍या फसल उगाने से पहले आप जुताई आदि की कोई रिहर्सल वगैरा करते हैं
?
उत्‍तर- भैया हम ये रिहर्सल ना जानें, हम तो बस खेती जानें हैं।


एक अंतिम सवाल- जब लोग आपको दूसरों से बेहतर हल चलाते देखकर प्रशंसा करते हैं तो कैसा फील करते हैं
?
उत्‍तर- भैया ई में प्रशंसा की कौन बात है। हमें तो खेती करन से मतलब, हम ई प्रशंसा के फेर-फार में नहीं पड़त।

पर फिर भी मुझे नहीं लगता कि सरकार की नीयत ठीक है और हमेशा उन्‍नत खेती की रट लगाने पर भी वह खेती की उन्‍नति के लिए कुछ कदम उठायेगी।

3 comments:

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

हालांकि जिक्र यहां सिर्फ फिल्म स्तारों का है, इस मेँ राज नेता /नेत्री भी जोड लिया जाये.कुछ वर्ष पहले दक्षिण् राज्य की एक मुख्य मंत्री ने अपनी अलेखित आय को एक अंगूरे के बगान से हुई आय बताया था.और वह आय इतनी ज्यादा ठीक कि आयकर वाले भी हैरान हो गये कि हमारी खेती इतनी उत्पादक कब से हो गयी. खैर..
अपंने अपने शगल हैं..
अरविन्द चतुर्वेदी
भारतीयम्

Pratik Pandey said...

बहुत खूब भुवनेश भाई, बढ़िया लिखा है। ये "स्टार किसान" देश का भला करना चाह रहे हैं, लेकिन लोग ख़्वामख़्वाह ही टंगड़ी बीच में अड़ा रहे हैं।

Anonymous said...

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