Saturday, April 05, 2008

एक देश दो नाम

अमेरिका में प्रोफेसर डा. निरंजन कुमार का यह लेख 3 अप्रैल के दैनिक जागरण में छपा था। इस लेख में उन्‍होंने भारत के विविध नामों और उनकी उत्‍पत्ति पर प्रकाश डाला है। बेहद जानकारीपूर्ण यह लेख मैं दैनिक जागरण और डा. निरंजन कुमार के आभार सहित यहां प्रस्‍तुत कर रहा हूं-


एक देश दो नाम

-डॉ. निरंजन कुमार

विदेश में रहते हुए अपने देश को नए तरीके से देखने-समझने की दृष्टि मिलती है। इनमें से एक है कि अपने देश का नाम क्या हो? वैसे अपने देश के कई नाम रहे हैं-जंबूद्वीप आर्यावर्त, आर्यदेश या आर्यनाडु, भारत, हिंद, हिंदुस्तान, इंडिया आदि। जंबूद्वीप नाम धार्मिक होने की वजह से एवं आर्यावर्त और आर्यदेश या आर्यनाडु जाति बोधक होने से खुद ही अप्रचलित हो गए। आज प्रमुख रूप से तीन नाम मिलते हैं- इंडिया, हिंदुस्तान, और भारत। सबसे पहले इंडिया को देखें। इंडिया काफी पुराना शब्द है और ग्रीक भाषा से आया है। ईसा पूर्व चौथी-पांचवीं सदी में ग्रीक लोगों ने सिंधु नदी के लिए इंडस शब्द का प्रयोग किया और इससे आगे की भूमि को इंडिया कहा, जो बाद में चलकर इंडिया बन गया। ग्रीक से यह दूसरी सदी में लैटिन में आया और फिर 9वीं सदी में अंग्रेजी में, लेकिन अंग्रेजी में इसका बहुलता से प्रयोग 16वीं- 17वीं सदी में हुआ। इंडिया शब्द पर विचार करें तो एक ओर तो यह पश्चिम/अंग्रेजी औपनिवेशिक-साम्राज्यवादी शासन की देन है और दूसरी तरफ यह शब्द उन देशवासियों को अपने में समाहित करता नहीं दिखाई पड़ता है, जो देश की मेहनतकश आम जनता है, जो गांवों और छोटे शहरों में रहती है या बड़े शहरों में हाशिए पर है। इंडिया और इंडियन से हमें ऐसे लोगों या वर्ग का बोध होता है जो शक्ल और सूरत में भले ही देश के अन्य लोगों की तरह हों, पर अपने व्यवहार, वेशभूषा, बोली और संस्कृति में मानो पश्चिम की फोटोकापी हों। इस तरह इंडिया शब्द में एक तरफ जहां साम्राज्यवादी गंध है तो दूसरी ओर यह पूरे देश का प्रतिनिधित्व करता दिखाई नहीं पड़ता। दूसरा शब्द है हिंदुस्तान। यह शब्द भी काफी पुराना है। इसका उद्गम भी उसी सिंधु नदी से हुआ है। ईरानी लोग स का उच्चारण नहीं कर पाते थे, इसे वे ह कहते थे। इसलिए प्राचीन ईरानी और अवेस्ता भाषाओं (ईपू10वीं सदी) में सिंधु के लिए हिंदू मिलता है। ईपू 486 की पुस्तक नक्श-ई-रुस्तम में उल्लेख मिलता है कि ईरान के एक शासक डारीयस ने इस प्रदेश को हिंदुश कहा। अवेस्ता भाषा में स्थान के लिए स्तान शब्द मिलता है। इस प्रकार यह प्रदेश हिंदुस्तान कहा जाने लगा और यहां के निवासी हिंदू। उस समय हिंदू शब्द धर्म का पर्याय नहीं था। अरबी में इसे अलहिंद कहा जाता था। 11वीं सदी की इतिहास की पुस्तक है तारीख अल-हिंद। इसी से हिंद शब्द आया। इस प्रकार हिंदुस्तान शब्द शुद्ध रूप से एक सेकुलर शब्द था, लेकिन मुख्य रूप से यह उत्तर भारत के लिए इस्तेमाल होता था। अंग्रेजी शासन काल में फूट डालो और राज करो कि नीति के तहत हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक खाई पैदा होनी शुरू हुई। इसी समय दुर्भाग्यवश नारा आया हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान का, जो कि धार्मिक- राजनीतिक भावना से प्रेरित था। इस बढ़ती हुई दूरी का दुष्परिणाम सामने आया जिन्ना की टू नेशन थ्योरी के रूप में। इस द्वि-राष्ट्र के सिद्धांत के अनुसार, हिंदू और मुस्लिम, दो अलग-अलग राष्ट्र या राष्ट्रीयता हैं। हिंदुस्तान हिंदुओं के लिए है, इसलिए मुसलमानों के लिए एक अलग देश होना चाहिए। इसी से पाकिस्तान की मांग आई। इस तरह हिंदुस्तान शब्द, जो पूरी तरह से पंथनिरपेक्ष शब्द था, एक तरह से सेकुलर नही रह गया। अधिकांश बड़े नेता-गांधीजी, नेहरू, मौलाना आजाद आदि जिन्ना से सहमत नहीं थे, लेकिन विशिष्ट ऐतिहासिक, राजनीतिक परिस्थितियों में पाकिस्तान बन गया। हमारे नेताओं ने यह कभी नहीं माना की हिंदुस्तान सिर्फ हिंदुओं का देश है। यह अनायास नहीं था कि जब देश का संविधान बना तो इसके पहले ही अनुच्छेद में कहा गया है कि इंडिया अर्थात भारत राज्यों का एक संघ होगा। इस मिले-जुले धर्म, समाज और संस्कृति वाले देश को पूरी दुनिया आश्चर्य और सम्मान से देखती है। इंडिया शब्द को अपनाना दुर्भाग्यपूर्ण था, शायद इसके पीछे औपनिवेशिक शासन का मनोवैज्ञानिक दबाव रहा होगा। औपनिवेशिक-मनोवैज्ञानिक दबाव के कारण ही अनुच्छेद 343 के तहत दुर्भाग्यवश हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी राजभाषा बना दिया गया। इसी मानसिकता के तहत कालिदास को भारत का मिल्टन, समुद्र गुप्त को नेपोलियन बोनापार्ट और कह दिया जाता है, जो कि बिल्कुल औपनिवेशिक व्याख्या है, लेकिन आज वह दबाव खत्म हो चुका है। भारत नाम सबसे सार्थक है। यह शब्द संस्कृत के भ्र धातु से आया है, जिसका अर्थ है उत्पन्न करना, वहन करना निर्वाह करना। इस तरह भारत का शाब्दिक अर्थ है-जो निर्वाह करता है या जो उत्पन्न करता है। भारत का एक अन्य अर्थ है ज्ञान की खोज में संलग्न। अपने अर्थ और मूल्य में यह शब्द सेकुलर भी है। यह नाम प्राचीन राजा भरत से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसका कोई धार्मिक मतलब नहीं। संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 23 भाषाओं में से लगभग सभी में इसे भारत, भारोत, भारता या भारतम कहा जाता है। क्या अच्छा हो कि हम इसे इंडिया की जगह भारत पुकारें।

साभार: दैनिक जागरण

6 comments:

संजय बेंगाणी said...

इंडिया पूकारता ही कौन है? जो लघूग्रंथी से ग्रस्त है.

बाकि तो मेरा भारत महान.

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छा लेख हे आप का, जिन्हे इन बातो का नही पता उन के लिये तो ओर भी अच्छा हे,
संजय जी. जो आज कल अग्रेजी मे बात करते हे. ओर अपने आप कॊ बहुत उचित समझते हे,वही ईडियन कहते हे,ओर जो कई भाषाये जान कर भी अपनी भाषा नही छोडना चाहते, वो भारत को भारत माता ही कहते हे

Sanjeet Tripathi said...

एक अच्छा लेख पढ़वाने के लिए शुक्रिया बंधु!

Shiv said...

बहुत बढ़िया लेख. प्रस्तुति के लिए शुक्रिया.

Gyan Dutt Pandey said...

सही लिखा जी। अपनी पीठ पर हम बहुत कचरे का बोरा ढ़ो रहे हैं।

pandit visnugupta said...

mujhe lagata hai ki angrejo ne hamare ek khel ko criket bana ke dunia ke samane parosha(jaise ki dunia ka sara vigyan bharat se churaya hua hai) ia se india shabd ki tatti ka prachalan bahut jyada ho gaya hai.........ganv ganv tak