इस वर्ष भी मुंबई में गणेशोत्सव की धूम रही और चूंकि ये महानगर भारतीय भद्रवर्ग के सपनों का प्रतीक है सो मीडिया कवरेज तो मिलना ही था। प्रत्येक मीडिया चैनल ने कवरेज की इस होड़ में बढ चढकर हिस्सा लिया। बताया जा रहा था कि फलां मंडल में बालीवुड की कितनी हस्तियां पधारीं, किस बालीवुड हस्ती के घर में किस प्रकार के गणपति स्थापित किये गये, कौन सा गणपति पंडाल चढावे के मामले में कितना अमीर है। यहां तक कि मुंबई के लालबाग के राजा के नाम से मशहूर गणपति को तो लोगों ने लगभग पूरा ही सोने का बना डाला था।
दूसरी तरफ राज्य के पूर्वी हिस्से, जिसे विदर्भ के नाम से बेहतर जाना जाता है, में सन्नाटा पसरा हुआ था। ऐसा त्यौहार जब पूरा महाराष्ट्र जश्न में डूबा रहता है, विदर्भ में मौत पसरी हुई थी। उदाहरण के लिये अकोला जिले के एक गांव सांगलुड को ही लें यहां वर्ष २००४ में सात गणेश मंडल थे। २००५ में एक भी नहीं बचा, उत्सव का मुख्य आयोजक एक किसान था जिसने आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या कर ली थी। जून २००५ से जून २००६ तक ७६० किसानों द्वारा आत्महत्या की गई जबकि सितंबर तक ये आंकडा ८५० को पार कर चुका है। अर्थात पहले औसतन १२ घंटे में एक आत्महत्या हो रही थी वहीं अब ये दर प्रति आठ घंटे एक आत्महत्या पर जा पहुंची है। माननीय प्रधानमंत्री के दौरे और उनकी घोषणाओं के बाद भी स्थिति जस कि तस है और प्रशासन की कान में जूं तक नहीं रेंगी है साथ ही जाते जाते प्रधानमंत्री यह भी कह गये कि लोग खेती छोडकर अन्य काम करें। विडंबना तो ये है कि प्रधानमंत्री के दौरे से पहले मुख्यमंत्री और प्रदेश के किसी मंत्री तक ने यहां आने की जहमत नहीं उठाई। और इससे ज्यादा शर्म की बात क्या होगी कि भारत जो स्वयं को आगामी वर्षों में चीन और अमेरिका के समकक्ष खडा देखता है, वहां के कृषि मंत्री अपने राज्य में हो रही मौतों से आंखें मूंदे हुए है और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में राजनीति का गंदा खेल खेलकर भारतीय क्रिकेट की बखिया उधेडने में व्यस्त हैं।
दूसरी तरफ राज्य के पूर्वी हिस्से, जिसे विदर्भ के नाम से बेहतर जाना जाता है, में सन्नाटा पसरा हुआ था। ऐसा त्यौहार जब पूरा महाराष्ट्र जश्न में डूबा रहता है, विदर्भ में मौत पसरी हुई थी। उदाहरण के लिये अकोला जिले के एक गांव सांगलुड को ही लें यहां वर्ष २००४ में सात गणेश मंडल थे। २००५ में एक भी नहीं बचा, उत्सव का मुख्य आयोजक एक किसान था जिसने आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या कर ली थी। जून २००५ से जून २००६ तक ७६० किसानों द्वारा आत्महत्या की गई जबकि सितंबर तक ये आंकडा ८५० को पार कर चुका है। अर्थात पहले औसतन १२ घंटे में एक आत्महत्या हो रही थी वहीं अब ये दर प्रति आठ घंटे एक आत्महत्या पर जा पहुंची है। माननीय प्रधानमंत्री के दौरे और उनकी घोषणाओं के बाद भी स्थिति जस कि तस है और प्रशासन की कान में जूं तक नहीं रेंगी है साथ ही जाते जाते प्रधानमंत्री यह भी कह गये कि लोग खेती छोडकर अन्य काम करें। विडंबना तो ये है कि प्रधानमंत्री के दौरे से पहले मुख्यमंत्री और प्रदेश के किसी मंत्री तक ने यहां आने की जहमत नहीं उठाई। और इससे ज्यादा शर्म की बात क्या होगी कि भारत जो स्वयं को आगामी वर्षों में चीन और अमेरिका के समकक्ष खडा देखता है, वहां के कृषि मंत्री अपने राज्य में हो रही मौतों से आंखें मूंदे हुए है और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में राजनीति का गंदा खेल खेलकर भारतीय क्रिकेट की बखिया उधेडने में व्यस्त हैं।
क्या इस सब के बावजूद हमारी मीडिया की कोई जिम्मेदारी बनती है? जवाब है- नहीं। क्योंकि उन बेचारों को तो खबर और सनसनी में अंतर ही नहीं पता। अब जहां मीडिया से जुडे लोग खबर की परिभाषा से ही परिचित ना हों तो क्या ये हमारी तानाशाही नहीं होगी कि हम उन पर 'खबरों' को प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी लादें। वे बेचारे तो सनसनी फैलाकर अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं। 'द हिंदू' के द्वारा काफी लंबे समय से दक्षिण भारत में किसानों की समस्याओं को उठाया जा रहा है चाहे वह आंध्रप्रदेश हो कर्नाटक हो या आज का विदर्भ। वास्तव में ऐसे मीडिया ग्रुप्स बधाई के पात्र हैं।
गौर करने वाली बात तो ये है कि महाराष्ट्र जिसे देश का सबसे अमीर राज्य भी कहा जाता है, वहां कुपोषण से होने वाली मौतों की संख्या देश में सर्वाधिक है। माननीय मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा इस कारण कई बार प्रदेश सरकार को फटकार भी खानी पडी है। स्वयं को देश का सबसे अग्रणी राज्य बताने वाले महाराष्ट्र के नेता क्या मुंबई की चकाचौंध से निकलकर विदर्भ के किसानों के लिये कुछ करेंगे?
गौर करने वाली बात तो ये है कि महाराष्ट्र जिसे देश का सबसे अमीर राज्य भी कहा जाता है, वहां कुपोषण से होने वाली मौतों की संख्या देश में सर्वाधिक है। माननीय मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा इस कारण कई बार प्रदेश सरकार को फटकार भी खानी पडी है। स्वयं को देश का सबसे अग्रणी राज्य बताने वाले महाराष्ट्र के नेता क्या मुंबई की चकाचौंध से निकलकर विदर्भ के किसानों के लिये कुछ करेंगे?
1 comment:
आपकी विषयों पर गहरी पकड़ और बात कहने का अंदाज काबिले तारीफ है। आपका कहना ठीक है कि मीडिया को एन विषयों को व्यापक रूप से उठाना चाहिये। NDTV ने भी इस विषय को उठाया था और विशेष कार्यक्र्म भी किया था।
सच यही है कि जो हम मीडिया द्वारा देखते हैं वैसा ही जानते और सोचते हैं। यह भी सच है कि हम अपने आसपास के क्षेत्र के बारे में ज्यादा जागरूक होते हैं।
आपसे इस प्रकार के और लेखों की उम्मीद रहेगी।
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