Sunday, October 08, 2006

"खेती"- परसाईजी की वयंग्य रचना

आज रविवार का दिन होने से पिछले दिनों खरीदी परसाईजी की पुस्तक 'सदाचार का तावीज' पढ़ने का मौका हाथ लगा। परसाईजी ने अपनी इस पुस्तक में हमेशा की तरह सामाजिक व राजनैतिक विसंगतियों पर अपने व्यंग्य बाण चलाये हैं। इसी पुस्तक में से चुनी हुई एक वयंग्य कथा है- 'खेती' जिसमें सरकारी उपेक्षा से त्रस्त कृषक वर्ग व देश को कागजों में ही पर्याप्त अन्न उगा कर देने वाली सरकारी नीतियों पर व्यंग्य किया गया है।

'खेती'
लेखक- हरिशंकर परसाई

सरकार ने घोषणा की कि हम अधिक अन्न पैदा करेंगे और एक साल में खाद्य में आत्मनिर्भर हो जायेंगे।

दूसरे दिन कागज के कारखानों को दस लाख एकड़ कागज का आर्डर दे दिया गया।
जब कागज आ गया, तो उसकी फाइलें बना दी गयीं। प्रधानमंत्री के सचिवालय से फाइल खाद्य विभाग को भेजी गयी। खाद्य विभाग ने उस पर लिख दिया कि इस फाइल से कितना अनाज पैदा होना है और अर्थ विभाग को भेज दिया।

अर्थ विभाग में फाइल के साथ नोट नत्थी किये गये और उसे कृषि विभाग भेज दिया गया।
कृषि विभाग में उसमें बीज और खाद डाल दिये गये और उसे बिजली विभाग को भेज दिया।
बिजली विभाग ने उसमें बिजली लगायी और उसे सिंचाई विभाग को भेज दिया गया।

अब यह फाइल गृह विभाग को भेज दी गयी। गृह विभाग विभाग ने उसे एक सिपाही को सौंपा और पुलिस की निगरानी में वह फाइल राजधानी से लेकर तहसील तक के दफ्तरों में ले जायी गयी। हर दफ्तर में फाइल की आरती करके उसे दूसरे दफ्तर में भेज दिया जाता।

जब फाइल सब दफ्तर घूम चुकी तब उसे पकी जानकर फूड कार्पोरेशन के दफ्तर में भेज दिया गयाऔर उस पर लिख दिया गया कि इसकी फसल काट ली जाए। इस तरह दस लाख एकड़ कागज की फाइलों की फसल पककर फूड कार्पोरेशन के पास पहुँच गयी।

एक दिन एक किसान सरकार से मिला और उसने कहा- "हुजूर हम किसानों को आप जमीन, पानी और बीज दिला दीजिए और अपने अफसरों से हमारी रक्षा कीजिए, तो हम देश के लिए पूरा अनाज पैदा कर देंगे।"

सरकारी प्रवक्ता ने जवाब दिया- "अन्न की पैदावार के लिए किसान की अब जरूरत नहीं है। हम दस लाख एकड़ कागज पर अन्न पैदा कर रहे हैं।"

कुछ दिनों बाद सरकार ने बयान दिया- "इस साल तो संभव नहीं हो सका, पर आगामी साल हम जरूर खाद्य में आत्मनिर्भर हो जायेंगे।"
और उसी दिन बीस लाख एकड़ कागज का ऑर्डर और दे दिया गया।


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4 comments:

गिरिराज जोशी said...

धन्यवाद भूवनेशजी!!!

"दफ्तरी खेती" पर परसाईजी के व्यंग्य वाण बहुत घातक है, मन भारी-भारी सा लगने लगा है।
इस पर एक कविता लिख रहा हूँ, उम्मीद है बहुत जल्द आप तक पहुँचा दूँगा।

एक बार फिर से धन्यवाद!!!

Manish Kumar said...

बहुत अच्छा व्यंग्य बाँटा आपने परसाई जी का । मैंने भी ये पुस्तक पढ़नी शुरु की है । वास्तव में उनका लेखन मजेदार है ।

Anonymous said...

i love "vayang rachana"
my fav lekhak harishankar parshai nad sharad joshi.
i also like this prose.
thanks

shailja said...

main parsaiji ki bahut badipankha huin .aap accha likhte hain. maine parsaiji par mphil ki hain aur ab parsaiji aur sharad joshi ke uper tulnaatmak addayan kar rahi huin phd main. aap is vishay ke adhik jaankaar hain mujhi bhi kuch sahyog dijiyega.main aapki aabhari rahuingi.dhanyavaad.