Thursday, November 30, 2006

रात बाकी है अभी

दिन गुजर गया
रात बाकी है अभी
दिन में देखा था उसे
अपनी गली में आते
नजरें झुकाकर
जुल्फ़ें सँवारते
पर बात बाकी है अभी
मुझे पता है
आँखें मूँदते ही
फ़िर से दबे पाँव
सपने में आयेगी वो
उसकी आँखों में डूब जाने को
दिल बेताब है अभी

6 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

बहुत अच्‍छा भुवनेश जी

अनूप शुक्ल said...

यह तो कल शाम /रात की बात थी. अब बताया जाये कि सपने में क्या हुआ? कितना डूबे-उतराये!

Manish Kumar said...

हम्म्म्म्म.मामला गंभीर लगता है ! उचित छानबीन की आवश्यकता है :)

Udan Tashtari said...

डूबे कि नहीं?

थोड़ा लेखन से मौका निकाल कर तैरना भी सीखो, कभी काम ही आयेगा!! :)

Sagar Chand Nahar said...

भाई जरा उनका नाम भी बता देते जिनकी आँखों में डूब जाने कि जी करता है।

Anonymous said...

कविता सुन्दर है।