Thursday, November 30, 2006

रात बाकी है अभी

दिन गुजर गया
रात बाकी है अभी
दिन में देखा था उसे
अपनी गली में आते
नजरें झुकाकर
जुल्फ़ें सँवारते
पर बात बाकी है अभी
मुझे पता है
आँखें मूँदते ही
फ़िर से दबे पाँव
सपने में आयेगी वो
उसकी आँखों में डूब जाने को
दिल बेताब है अभी

Sunday, November 26, 2006

जय हो पपीता देव की

मध्य प्रदेश के सीधी शहर में गत १५ नवंबर को एक सज्जन के यहाँ लगे पपीते के पेड़ से एक विकृत आकृति का पपीता प्राप्त हुआ। जिसे उन्होंने गणेशजी का पपीते में अवतरण मानते हुए पूजा-अर्चना शुरू करवा दी। पपीते में गणेश भगवान की बात सुनकर हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित हो गये। सुबह-शाम उसकी आरती भी की जाने लगी, चढ़ावा एकत्रित होने लगा। २२ नवंबर को उस पपीते को एक जगह दफ़ना दिया गया। अब उस जगह पर गणेशजी का मंदिर बनाने की उक्त महाशय की योजना है।

सहारा समय मध्य प्रदेश के पत्रकार ने लाइव बातचीत में जब इन सज्जन को समझाने की कोशिश की कि ये पपीते में आई किसी विकृति का परिणाम है। ऐसा कभी-कभार मनुष्यों और पशुओं के बच्चों में भी देखा जाता है। तो ये सज्जन उनकी आस्था पर कुठाराघात समझकर उस पत्रकार पर भड़क गये। पत्रकार का ये भी कहना था कि आपके कारण लोग अपने काम-धंधों पर जाने की बजाय आपके यहाँ पूजा-अर्चना में लगे हैं। और आप पपीते की जगह पर मंदिर बनवाकर भगवान के नाम पर अपनी दुकानदारी चलाना चाहते हैं।

खैर ये तो बात हुई सहारा समय पर प्रसारित हुई खबर की। पर हमारे देश में ऐसी असंख्य घटनाएं हर रोज ही घटा करती हैं। कुछ समय पहले की ही बात है मेरे गाँव में एक आदमी के यहाँ विकृत अंगों वाली बालिका पैदा हुई। गाँव वालों ने उसे देवी मानकर चढ़ावा चढ़ाना शुरू कर दिया। उस गरीब ने कुछ दिनों के लिए इस अफ़वाह से अपनी गरीबी दूर कर ली। ये हाल तब है जब गाँव शहर से ही लगा हुआ है, और लोगों की जीवन-शैली भी शहर के लोगों से अलग नहीं हैं।

हाल ही में मेरा एक मित्र बता रहा था कि कुछ बाबा लोग किसी स्थान पर कोई पत्थर की प्रतिमा गाड़ देते हैं और फ़िर उस इलाके में लोगों के पास जाकर कहते हैं कि हमें भगवान ने सपना दिया है कि फ़लां जगह उनकी मूर्ति निकलेगी। खुदाई करने पर मूर्ति निकल आती है और फ़िर ये लोग उसे दैवीय स्थान मानकर लोगों से चंदा इकट्ठा कर अपनी दुकानदारी चलाने के लिए मंदिर बना देते हैं।

ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था होने का दावा करने वाले देश के लोगों के ज्ञान का स्तर कितना है ये सर्वविदित है। हालात ग्रामीण क्षेत्रों या छोटे शहरों में ही ऐसे हों ऐसा भी नहीं। हाल ही में मुंबई और सूरत की घटनाओं के बारे में सब जानते ही हैं। हम विद्यालयों और महाविद्यालयों में आज किस प्रकार की शिक्षा दे रहे हैं? आज शिक्षा ऐसे छात्र पैदा कर रही है जो विचारशून्य होकर केवल मशीन की तरह काम करना जानते हैं। महज किताबी ज्ञान देने या रोजगारपरक शिक्षा ले लेने से क्या हम अच्छे नागरिक पैदा कर सकते हैं? क्या हम किसी भी घटना को व्यापक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में देखने का दृष्टिकोंण उन्हें दे पा रहे हैं?

कुछ लोगों को ये बात लीक से हटकर लगे पर मैंने खुद कई उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों को ऐसी हरकतें करते देखा है। जब हमारे उच्च शिक्षा प्राप्त लोग ही इस प्रकार की घटनाओं में कोई वैज्ञानिक कारण होना स्वीकार नहीं करते तब गरीब अनपढ़ लोगों से इस प्रकार की आशा करना तर्कसंगत नहीं है। मैंने अक्सर पाया है कि पढ़े-लिखे लोग घर के अंदर तो कहते मिल जायेंगे कि हां इसमें कोई वैज्ञानिक कारण ही होगा। पर भीड़ के साथ वे भी समान कृत्य करते ही नजर आयेंगे। हम मनुष्यों के नहीं भेड़-बकरियों के समाज में रहते हैं। जहाँ अधिकांश लोगों को धर्म, आध्यात्म, ईश्वर का नाम लेकर किसी भी दिशा में हांका जा सकता है।

इसलिए मैं सोच रहा हूँ क्यों ना ये चिट्ठालेखन छोड़कर कोई धर्म और आध्यात्म की दुकान खोल लूँ और इस चिट्ठे को अपनी दुकान की मार्केटिंग के लिए प्रयोग करूँ।

Saturday, November 25, 2006

क्या लिखूँ?

आज दोपहर से यही सोच रहा हूँ कि कुछ लिखा जाए? कई विषय भी दिमाग में थे, पर फ़िर भी कुछ लिखने का मूड ही नहीं कर रहा। अभी अनूप शुक्लाजी से बात हुई। उन्होंने कहा कुछ लिखो। मैंने बताया लिख तो दूँ पर क्या लिखूँ कुछ सूझ ही नहीं रहा। उन्होंने सलाह दी कि यही लिखो 'क्या लिखूँ?'।

लिखने के लिए यूँ तो बहुत कुछ है। पर लगता है क्यों लिखूँ। क्या लिखने भर से मन की सारी भड़ास निकल जायेगी। या फ़िर कुछ हल्का-फ़ुल्का लिखूँ। आज का अखबार पढ़ने के बाद कुछ हल्का-फ़ुल्का लिखने का भी मन नहीं कर रहा। शाम को पुस्तकालय से लौटा। अखबार रोज नये पर खबरें वही। द इकोनॉमिस्ट के सर्वे में बतलाया गया कि दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतंत्र में ढेरों खामियाँ। हमारे लोकतंत्र की झोली में एक और तमगा आ गिरा। वैसे ये तमगा जनता द्वारा रोज ही मिला करता है। पर इस बार तमगा इंपोर्टेड होने से बुद्धिजीवियों को बहस के लिए एक मुद्दा मिल गया। एक-दो दिन चर्चा होगी कि फ़लां-फ़लां परिस्थिति और नेता इसके दोषी हैं। फ़िर वह भी खतम। सब कुछ उसी ढर्रे पर चलता रहेगा हमेशा की तरह।

चीनी राष्ट्रपति के दौरे के बारे में संपादकीय पेज भरे पड़े हैं। आर्थिक मुद्दों पर सहयोग की बात करके और भारत-पाक शांति वार्ता की तारीफ़ कर वे पाक रवाना हो रहे हैं। जहाँ चीन-पाक मैत्री के नये आयाम गढ़े जायेंगे। बदला कुछ भी नहीं है। इधर जाते-जाते वे वामपंथियों को सलाह दे गये कि थोड़े तो उदार बनो और आर्थिक विकास की प्रक्रिया में बेवजह टांग अड़ाने से बाज आओ। पर कल दिल्ली में सरकार की आर्थिक नीतियों के विरोध में उन्होंने हर बार की तरह वही बेसुरा राग अलापा। अब वे इस बात से भी पल्ला झाड़ रहे हैं कि हू ने उन्हें ऐसी कोई सलाह दी।

जैसा कि परंपरा है संसद के शीतकालीन-सत्र की शुरूआत बड़ी हंगामेदार रही। भाजपा-शिवसेना ने संसद नहीं चलने दी और सपा सांसद अबू आजमी की गिरफ़्तारी पर भी खूब बवाल मचा और स्पीकर ने भी वही पुराना घिसा-पिटा डायलॉग दुहराया कि ये सब दुर्भाग्यपूर्ण है। मुझे लग रहा है कि यही लिखूँ कि भारत में संसद का होना ही दुर्भाग्यपूर्ण है। हमारे क्रिकेटिया शेरों की दहाड़ भी संसद में भी सुनाई दी। इस पर भी खूब चर्चा हुई संसद में अपने आचरण का जब-तब खुलेआम प्रदर्शन करने वालों को मैदान पर भारतीय शेरों के प्रदर्शन पर शर्म आ गई।

आजकल राजनीति की कला में मुँह के साथ-साथ हाथ-पैरों का भी भरपूर प्रयोग करने की परंपरा चल निकली है। सो कल उत्तर-प्रदेश में दो पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने इस कला का भरपूर प्रदर्शन किया। परंतु केवल हाथ-पैरों से इस कला में वह निखार नहीं आ पाता। इसलिए लगता है जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जायेंगे, कलाकार कुछ और उपकरणों का भी प्रयोग करते नजर आयेंगे।
वैसे कला के प्रदर्शन में तो टीम-इंडिया के शेर भी कम नहीं हैं। क्रिकेट की पिच पर भी वे रैंप की तरह कैटवाक करते हुए आते हैं और थोड़ी अदायें दिखाकर झट से दूसरे मॉडल को भेज देते हैं। वैसे गलती उनकी भी नहीं है। जब रात के एक बजे सारी भारत की जनता जम्हाईयाँ लेते हुए अपनी आँखों को जबर्दस्ती टीवी स्क्रीन पर टिकाये हुए है तो उनका भी फ़र्ज बनता है कि जल्दी से पैवेलियन लौटकर जनता को चैन की नींद सोने दें। पर उनके इतना करने के बावजूद वही जनता सुबह उठकर सबसे पहले उन्हीं को गरियाने का काम करती है।
पर इन सब बातों को भी लिखने से क्या फ़ायदा? इस बार भी कुछ नया तो नहीं हो रहा!

कलकत्ता में ग्रीनपीस के कार्यकर्ता लोगों से कह रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण गंगा मैया संकट में है। पर ऐसा करके भी वे क्या कर लेंगे। जनता और सरकार उसी गैल चलती रहेगी जिस पर पहले से चल रही है। बनारस के गंगा घाट पर शाम की आरती को देखने भी वैसे ही पर्यटक जुटते रहेंगे। इलाहबाद में गंगा की गंदगी के बावजूद उसका धार्मिक अवसरों पर वैसा ही महत्व बना रहेगा। लोगों के लिए ये सब चीजें बेमानी हैं यह लिखकर भी मैं क्या उखाड़ लूँगा

आज शाम को प्रतीक पांडेजी बतला रहे थे कि उनका चिट्ठा 'टाइमपास: समय नष्ट करने का श्रेष्ठ साधन' हिंदी चिट्ठों में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला चिट्ठा है। पढ़ा जाने वाला इसलिए नहीं कहा कि उस पर सब देखने के लिए ही होता है पढ़ने के लिए नहीं। प्रतीकजी ने चिंता जताई कि लोग ऐसे चिट्ठे ही ज्यादा देखते हैं पर साथ ही यह संतोष भी कि इस बहाने लोग उनके संजाल हिंदी ब्लॉग्स पर तो आते हैं। पर ये कोई नया ट्रेंड भी नहीं है, समाचार चैनल वाले यह बात वर्षों से कह रहे हैं।

लगता है आज कुछ भी लिखने के लिए नहीं है। जो हो रहा है उसे खिलाफ़ बुद्धिजीवियों के कोरस में सुर मिलाने से कोई हल निकलने वाला नहीं है। और ऐसा कुछ परिवर्तन भी दिखाई नहीं देता जिसके बारे में ही कुछ लिख दिया जाये। पर हर दिन मूड भी एक-सा नहीं रहता। कल शायद मैं भी फ़िर से वही राग अलापूँ। नेताओं को कोसूँ, लोगों के आचरण पर फ़िकरे कसूँ, फ़िल्मी हस्तियों की जीवन-शैली पर कोई व्यंग्य करूँ या किसी के अंधविश्वास को गालियाँ दूँ। हो सकता है कल सुबह के अखबार में कुछ नया हो, कुछ लिखने का मूड भी बने। पर पता नहीं क्यूँ आज कुछ लिखने का मन ही नहीं कर रहा।

Wednesday, November 22, 2006

सायबर कैफ़े कैसे चलायें? How to Run a Cyber Cafe

कल रात गूगल चैट पर हैदराबाद निवासी सागरचन्द नाहरजी से मुलाकात हो गयी। उनका सायबर कैफ़े का व्यवसाय है। मैंने जब उनके सायबर कैफ़े के हालचाल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वहाँ सायबर ढाबों (कैफ़े) की संख्या में बढ़ोत्तरी होने से प्रतियोगिता बढ़ गयी है। इसी कारण से ग्राहकों की संख्या में भी गिरावट आई है। हमने सलाह दी कि प्रतियोगिता बढ़ने पर तो व्यवसाय का मजा ही अलग है, रोज दूसरे के ग्राहक तोड़ो और अपने में जोड़ो। नाहरजी का कहना था कि इस प्रतियोगी माहौल में टिके रहने के लिए उन्हें कुछ सलाह दी जाए। तो हमारे खुराफ़ाती दिमाग में ऑन--स्पॉट जो टिप्स आयीं वो हमने धड़ाधड़ टाइप कर दीं। नाहरजी को हमारे सुझाव पसंद गये साथ ही उन्होंने अनुरोध भी कर दिया कि इस बाबत्एक पोस्ट भी लिखी जाए, जिसमें विस्तार से सायबर कैफ़े को चलाने के बारे में कुछ सुझाव दिये जाएं। जिस प्रकार किसी कवि के मन में हमेशा एक चाह रहती है कि उसे कोई श्रोता मिले उसी तरह हमारे मन के किसी कोने में भी यह चाह दबी थी कि हमें भी कोई सलाह लेने वाला मिले। लोगों को मुफ़्त की सलाह बाँटने में जो आनंद प्राप्त होता है वही आनंद मैं भी इस पोस्ट को लिखते समय अनुभव कर रहा हूँ और अन्य चिट्ठाकार बंधुओं से भी अपनी टिप्पणियों के माध्यम से इस आनंद को प्राप्त करने का अनुरोध करता हूँ।

मेरे मष्तिष्क में इस समय जो सुझाव उमड़-घुमड़ रहे हैं उनका ब्यौरा मैं यहां क्रमवार ढंग से दे रहा हूँ-

- सबसे पहली सलाह है कि युवावर्ग, टीनेजर्स और छात्रवर्ग को आकर्षित करने की ओर अपना ध्यान केंद्रित करें। क्योंकि यही वर्ग सायबर ढाबों पे अधिकांशत: पाया जाता है।

- युवावर्ग में भी खासकर लड़कियों को अपने कैफ़े की ओर आकर्षित करने का प्रयास करें क्योंकि यदि लड़कियाँ अधिक आने लगेंगी तो ग्राहक संख्या में वृद्धि होना तय है। ( यह फ़ार्मूला मुहल्ले के एक कोचिंग मास्टर से चुराया गया है।)

- अब सवाल उठता है कि लड़कियों को आकर्षित कैसे किया जाए, यदि संभव हो तो काउंटर पे कोई सुंदर नौजवान बैठे जो लड़कियों से उनके मन मुताबिक मीठी-मीठी बातें करने में माहिर हो। साथ ही लड़कियों को इंटरनेट प्रयोग करते समय जरूरत पड़ने पर सहायता भी करता रहे।

- लड़कियाँ चैटिंग करते समय चॉकलेट, कुरकुरे आदि खाने की बड़ी शौकीन होती हैं तो यदि संभव हो तो बिक्री के लिए ऐसा ही कुछ सामान भी रख लिया जाए। और कभी-कभी उन्हें ये चीजें मुफ़्त में भी उपलब्ध करवायी जाएं।

- समय-समय पर कुछ विशेष रियायत योजनाएं भी चलाते रहें, जैसे दो घंटे बैठने पर एक घंटा फ़्री आदि और इस आशय की सूचना अपने कैफ़े के बाहर चिपकाएं।

- पी.सी. के डेस्कटॉप पर फ़िल्मी सितारों के वॉलपेपर लगाएं और देखें कि इस समय युवा वर्ग किसके पीछे पागल है। जैसे आजकल धूम- के ऐश, बिपाशा, रितिक और अभिषेक जैसे हॉट सितारों का वॉलपेपर लगा सकते हैं। क्रिकेट में यदि धोनी शतक मार रहा हो तो उसे लगाईये।

- विभिन्न त्यौहारों और अंग्रेजी दिवसों पर कुछ कुछ नया करते रहें। जैसे वेलेंटाइन डे के दिन कैफ़े पर पहले आने वाले कपल्स के लिए फ़्री सर्फ़िंग, या अपने प्रियजन के लिए फ़्री संदेश भेजें इत्यादि।

- कई हिंदू त्यौहार भी हैं जैसे रक्षाबंधन पर बहनों के लिए भाईयों से चैटिंग या संदेश भेजने में विशेष रियायत। कुछेक को फ़्री भी। अन्य त्यौहारों पर अपने प्रियजनों, रिश्तेदारों से चैटिंग करने पर ५०% की छूट जैसा कुछ।

- महीने में किसी दिन कैफ़े पर पहले आने वाले - ग्राहकों के लिए फ़्री सर्फ़िंग।

१०- बाल-दिवस जैसे मौकों पर बच्चों के लिए क्विज-कांटेस्ट का आयोजन जिसमें इंटरनेट और सायबर वर्ल्ड से संबंधित कुछ बहुत ही सरल से सवाल पूछे जाएं और प्रथम द्वितीय आदि आने वाले बच्चों को हफ़्ते भर फ़्री सर्फ़िंग सुविधा, कुछेक को सांत्वना पुरस्कार स्वरूप चॉकलेट आदि। बाल-दिवस के अलावा भी साल में किसी दिन ये आयोजन हो सकता है बच्चों की छुट्टियां चल रहीं हों जब।

११- साल में किसी दिन अपने कैफ़े की वर्षगांठ मना डालें और उस दिन अपने नियमित ग्राहकों को छोटी-मोटी ट्रीट दे डालें। ऐसा ही आयोजन नववर्ष पर भी हो सकता है।

१२- सभी युवा लोगों से मित्रवत व्यवहार रखें, बागवान फ़िल्म के परेश रावल के रेस्टोरेंट से कुछ प्रेरणा लें और जान-पहचान वालों को कभी-कभी चाय-कॉफ़ी भी पिलाते रहें जिससे उन्हें कैफ़े का महौल अपना सा लगे और वे वहाँ अधिक समय गुजारें।

१३- लोगों को ऐसी साइट्स के बारे में बतायें जिससे वे कैफ़े में अधिक समय गुजारें जैसे ऑरकुट। लोगों की रुचि जानकर उन्हें वेबसाइट्स के नाम बतायें।

१४- कभी-कभी यदि ग्राहकों को आपत्ति हो तो किसी हालिया प्रदर्शित हिट फ़िल्म के गीतों को भी धीमी आवाज में सुनवायें। या फ़िर ग्राहकों का मूड पढ़कर कुछ अलग टाइप का संगीत भी चलायें।

१५- लोकल केबल पर विज्ञापन निकलवा सकते हैं कि शहर का सबसे सस्ता और अच्छा सायबर कैफ़े।

१६- सायबर कैफ़े के बाहर कुछ उल्टे-सीधे पोस्टर चिपकाते रहें और समय-समय पर उन्हें बदलते भी रहें, कभी मूड हो तो कुछ अंग्रेजी में उन पर लिख दें जैसे- सायबर वर्ल्ड में तहलका, गूगल की मुफ़्त नयी सुविधाएं, वर्डप्रेस पर नयी योजनाएं।

१७- ग्राहकों को ब्लॉगिंग के बारे में बताएं और स्वयं का चिट्ठा बनाने में मदद भी करें। जो जिस भाषा का हो उसे उसी की भाषा में चिट्ठा बनाने को उकसायें, दीवारों पर सूचना लगा सकते हैं कि 'now be the publisher of ur own literature' या 'अपनी भाषा में खुद को अभिव्यक्त करें ब्लॉग्स्पॉट और वर्डप्रेस का प्रयोग करें' लोगों को बताएं कि वे खुद का डोमेन खरीद सकते हैं मात्र रुपये ५०० में।


मुफ़्त की सलाह देते देते सुझावों की ये श्रृंखला कुछ ज्यादा ही लंबी हो गयी। इसलिए अब नाहरजी से अनुरोध है कि इनमें से जो भी सुझाव उन्हें वयावहारिक लगें वे उन्हें आजमायें, हमारी शुभकामनायें उनके साथ हैं। इस प्रतियोगिता में वे विजयी हों।

साथ ही अन्य चिट्ठाकार बंधुओं से आग्रह है कि वे भी अपने-अपने अमूल्य (मुफ़्त) सुझाव टिप्पणी के माध्यम से दें और नाहरजी को इस रण में विजयी बनायें।