Sunday, April 29, 2007

कहां है लोकनायक का परिवार?

पिछले दिनों न्यूज चैनलों पर केंद्रीय रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव को कहते सुना कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण को नेता उन्होंने बनाया। यदि लालूजी न होते तो शायद हमारा देश इस महान नेता को कभी न जान पाता और यदि लालूजी न होते तो इमरजेंसी के दौर में देश में जो इंदिरा विरोधी आंदोलन हुआ, वह भी संभव नहीं हो पाता। कुल मिलाकर इंदिरा गांधी को चुनावों में शायद ही कोई धूल चटा पाता, यदि लालूजी इमरजेंसी के टाइम पे आंदोलन नहीं करते। वाह क्या अदा है। लालूजी की इस अदा पर ही तो मीडिया मर-मिटी है। पर इस बार कुछ ज्यादा ही मर-मिटी। इसीलिए लालूजी को अगले दिन कहना पड़ा कि- भाई तुम लोग तो बात का बतंगड़ बना दिया हो, ई हमने कब कहा था।

वैसे ध्यान देने वाली बात यहां ये है कि अतीत में गांधी परिवार द्वारा उन पर किये गये अहसानों के वे ऋणी हैं। तभी तो उसका ऋण आज तक चुका रहे हैं सोनियाजी की चाटुकारिता कर। भई आज के टाइम में ऐसे अच्छे लोग कहां मिलते हैं जो किसी का अहसान मानें और उसे चुकाएं भी! तभी तो मीडिया के सामने वे कह दिये कि यदि इंदिराजी ने इमरजेंसी न लगाई होती तो वे कभी नेता नहीं बन पाते। जो लोग इंदिराजी का नाम आने पर हमेशा एक ही राग अलापते हैं कि उन्होंने इमरजेंसी लगाकर लोकतंत्र का गला घोंट दिया, उन्हें सबसे पहले यह तो देख लेना चाहिए कि उनके इमरजेंसी लगाने के कारण ही हमारे लोकतंत्र को लालूजी जैसा एक महान नेता मिल सका। इससे लोकतंत्र को भी गति ही मिली। फिर भी कुछ लोग इंदिराजी को गरियाने से बाज नहीं आते। पर हमारे लालूजी को देखिए, उन्होंने यह कहकर दूध का दूध पानी का पानी कर दिया कि इस देश को कड़ाई की जरूरत है, इसलिए इमरजेंसी क्या गलत था। इसी इमरजेंसी के लगने के कारण ही लालू जैसे जनसेवकों को जनता की सेवा करने का मौका मिल सका। नहीं तो बेचारी जनता, जनता दल(अब जनता दलों) से बिना सेवा कराए ही रह जाती। वैसे लोकनायक का परिवार यदि सत्ता में होता तो शायद अब तक लालूजी के नेता बनने का श्रेय इंदिरा गांधी की बजाय उन्हें कबका दे दिया जाता, ससम्मान! पर यही तो विडंबना है कि उनके परिवार का कहीं अता-पता नहीं है।

4 comments:

Sagar Chand Nahar said...

लोग है कि इतने महन नेता का मजाक उड़ाया करते हैं, चारा खाने का आरोप लगाते हैं। जनता वाकई में बहुत नादान है जो लालू जी जैसे महान नेता को सही पहचान नहीं पाती।

Pratik Pandey said...

जेपी भले ही भले आदमी हों, लेकिन बहुतेरे 'अभले' क़िस्म के लोग उनके आन्दोलन की देन हैं। लालू जी तो उनमें से सिर्फ़ एक हैं। काश कि इंदिरा जी आपातकाल घोषित न करतीं, तो न ही जेपी को आन्दोलन करना पड़ता और न ही आम जनता के ख़ून को चूसने वाले व जाति-आधारित राजनीति करने वाके 'समाजवादी' राजनेताओं का उदय होता।

Sanjeet Tripathi said...

भुवनेश भाई इस व्यंग्य के दौरान ही आपने एक पते का सवाल उठाया है जो कि बहुत दिनों से मेरे मन मे भी है। "डायनेस्टी" के इस दौर में आम जन से लेकर शरलाक होम्स के शिष्य भारतीय मीडिया को यह ख्याल क्यों नही आता कि कहां और किस हालात में है लोकनायक का परिवार

रंजन (Ranjan) said...

परिवारवाद का विरोध - चाहे वो किसी का भी हो...