Thursday, April 26, 2007

मायावती और बाजार में खड़ा दलित वोट-बैंक Mayavati and vote bank Politics

एक समय वह भी था जब मायावती मंच पर खड़े होकर कहती थीं, तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार।आज उन्‍हीं मायावती ने उत्‍तर-प्रदेश में उच्‍चजाति के 139 उम्‍मीदवारों को टिकट दिया है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि मायावती की नजर इन जातियों के वोट बैंक पर पहले नहीं पड़ी। दरअसल यही उनकी(या कहें काशीराम की) सफलता का राज भी है कि वर्षों से उच्‍च-जाति की खिलाफत करने के कारण आज उत्‍तर-प्रदेश ही नहीं बाहर के प्रदेशों में रहने वाला दलित समुदाय भी चुनाव में आंख मूंदकर हाथी पर मुहर लगाता है(अब शायद बटन दबाता है)।

मायावती को, जो खुद एक दलित और बेहद पिछड़ी पृष्‍ठभूमि से आकर राजनीति में उच्‍च पायदान पर काबिज हुईं, बखूबी पता है कि दलित वोट बैंक को नोट बैंक में कैसे बदला जाता है। आज उनकी ब.स.पा. के वोट की कीमत शायद हिंदुस्‍तान के किसी भी राजनैतिक दल के टिकट से ज्‍यादा है और यह कीमत कोई भी लगा सकता है। भई सीधी सी बात है जिस उम्‍मीदवार का चुनाव-चिन्‍ह हाथी है, उसे दलित वर्ग से एकमुश्‍त वोट मिलते ही हैं। और यदि उम्‍मीदवार किसी दूसरी जाति से ताल्‍लुक रखता है तो दोनों जातियों के वोट एक साथ जुगाड़कर उसकी जीत की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। वहीं उसी निर्वाचन क्षेत्र से किसी दलित के खड़े होने पर दलितों को छोड़ अन्‍य जातियों के वोट उसे मिलने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। इसीलिए आज उच्‍च जाति के सेल्‍फ मेड नेताओं को एक ही राह नजर आती है। यदि एक बार ऊंची रकम लेकर बहिनजी के दरबार में पहुंच गये तो टिकट तो पक्‍का ही समझो। मायावती को चढ़ावा बेहद प्रिय है इसलिए वे खुलेआम मंच से पार्टी फंड के लिए अधिक से अधिक चंदा देने की बात तो करती ही हैं उनकी पार्टी की रैलियों में उनके पार्टी पदाधिकारी भी जी भरकर चंदा उगाहते हैं।

इस बार वे चुनाव में खड़ी भी नहीं हो रही हैं क्‍योंकि टिकट बांट-बांटकर(बेच-बेचकर) नोटों का जुगाड़ तो वे कर ही चुकी हैं। अब यदि परिणाम आने पर लगेगा कि उनके ग्राहकों ने तो वाकई मैदान मार लिया तो वे सत्‍ता-सुख भोग ही लेंगी, नहीं तो अपने महल में आराम फरमायेंगी। उनके लिए उनका वोट बैंक उस दुधारू पशु की तरह है जिसका मालिक हाट में खड़ा होकर उसकी रस्‍सी मनचाहे दाम देने वाले के हाथ में थमा देता है। सीधे शब्‍दों में कहें तो दलितों की नेता मायावती को दलित वोट बैंक की दलाली में ही अपना सुखमय भविष्‍य नजर आता है। पर इस प्रकार दलितों को सीढ़ी बनाकर कुर्सी पर काबिज होने वाले नेता दलितों का कितना भला करते हैं यह विचार करने का कोई तुक नहीं बनता। वैसे भी कांग्रेस के चाणक्‍य कहे जाने वाले एक मंत्री पहले ही क्रीमीलेयर को पूरी मलाई खिलाकर दलितों-पिछड़ों सबका भला कर गंगा नहा चुके हैं।

असल विचार करने लायक बात यह है कि इस प्रकार एक पार्टी या जातिविशेष का वोट बैंक किसी भी ऐरे-गैरे के हाथों थमा देने से पहले से ही अपराधीकरण से त्रस्‍त भारतीय राजनीति में अपराधियों और बाहुबलियों का आना और आसान नहीं हो जाएगा?

1 comment:

Dr.Adhura said...

jo jati v dharm ya aisa mudaa karke raj niti karte vh raj neta nahi desh ke dusman hai or bhart me aazadi ke bad koi desh bhagt aage nahi aaya.bas hum kuve me gir rhai hai hmara vot bank is bat pr vichar nahi karte.